गणतंत्र
गणों के इस महातन्त्र में, जब रचा गया गणतन्त्र था।
दिन था 26 जनवरी और सन 1950 था।
आत्मसात जब किया देश ने दिन वो बहुत महान था।
लागू कर संविधान नया, संप्रभु देश बनाया था।
पूर्ण गणतन्त्र घोषित कर देश को, लोकतांत्रिक बनाया था।
डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद को तब, राष्ट्रपति देश का बनाया था।
संसद के गलियारे में, फिर रोहण हुआ तिरंगा था।
देकर 21 तोपों की सलामी, झंडावंदन तब गूँजा था।
पाँच मील लम्बी परेड ने, शौर्य गीत तब गाया था।
वीरों की ये शान तिरंगा तब देवभूमि पर लहरा था।
हर्ष और उल्लास से भरकर, हुआ जीवन्त नवभारत था।
सदियों से परतन्त्रता की बेड़ियों में, जो देश अभी तक जकड़ा था।
वीरों के लहू से लिखे पन्नों, का इतिहास समेटे बैठा था।
वह देश आज परतन्त्र से, लोकतंत्र में हुआ परिवर्तित था।
इसे स्वतन्त्र राष्ट्र बनाने को, लाखों ने प्राण गँवाया था।
नित नई क्रांतियों -आंदोलनों से, अंग्रेजों को पीछे पछाड़ा था।
माली बन देश की बगिया को, वीरों ने लहू से सींचा था।
प्राणों की अपनी बलि देकर,आज़ादी का बीज तब बोया था।
अनगिनत बाप- बेटे और भाई-पतियों का हुआ संहार था।
तब अबलाओं ने बन सबला, वीरता का दिया जो परिचय था।
बंधकर एकता के सूत्र में, आज़ादी का बिगुल तब फूँका था।
उसके दम पर ही देश ने फिर, आजादी को अपनी पाया था।
उन सबके बलिदानों ने ही इसे, लोकतांत्रिक देश बनाया है।
इसकी संप्रभुता-अखण्डता की, रक्षा अब हमें ही करना है।
इस पावन बेला पर फ़िर से, आओ मिलकर सब प्रण यह लें।
सम्प्रभुता, एकता, अखण्डता देश की, नित - नित हम मज़बूत करें।
जो स्वप्न वीरों ने देखा था, उस सपने को साकार करें।
हम एक नया इतिहास रचें, स्वच्छ - सुंदर देश निर्माण करें।
भारत माँ का श्रृंगार करें, वीरगाथा का गुणगान करें।
नव भारत का निर्माण करें, सारे संसार में नाम करें।
जय भारतभूमि जयगान करें, भारत माँ की जयकार करें।
जय हो भारत, जय हो भारत, वन्दन हम बारम्बार करें।
जय हिंद, जय भारत।
रचयिता
सुप्रिया सिंह,
इं0 प्र0 अ0,
प्राथमिक विद्यालय-बनियामऊ 1,
विकास क्षेत्र-मछरेहटा,
जनपद-सीतापुर।
दिन था 26 जनवरी और सन 1950 था।
आत्मसात जब किया देश ने दिन वो बहुत महान था।
लागू कर संविधान नया, संप्रभु देश बनाया था।
पूर्ण गणतन्त्र घोषित कर देश को, लोकतांत्रिक बनाया था।
डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद को तब, राष्ट्रपति देश का बनाया था।
संसद के गलियारे में, फिर रोहण हुआ तिरंगा था।
देकर 21 तोपों की सलामी, झंडावंदन तब गूँजा था।
पाँच मील लम्बी परेड ने, शौर्य गीत तब गाया था।
वीरों की ये शान तिरंगा तब देवभूमि पर लहरा था।
हर्ष और उल्लास से भरकर, हुआ जीवन्त नवभारत था।
सदियों से परतन्त्रता की बेड़ियों में, जो देश अभी तक जकड़ा था।
वीरों के लहू से लिखे पन्नों, का इतिहास समेटे बैठा था।
वह देश आज परतन्त्र से, लोकतंत्र में हुआ परिवर्तित था।
इसे स्वतन्त्र राष्ट्र बनाने को, लाखों ने प्राण गँवाया था।
नित नई क्रांतियों -आंदोलनों से, अंग्रेजों को पीछे पछाड़ा था।
माली बन देश की बगिया को, वीरों ने लहू से सींचा था।
प्राणों की अपनी बलि देकर,आज़ादी का बीज तब बोया था।
अनगिनत बाप- बेटे और भाई-पतियों का हुआ संहार था।
तब अबलाओं ने बन सबला, वीरता का दिया जो परिचय था।
बंधकर एकता के सूत्र में, आज़ादी का बिगुल तब फूँका था।
उसके दम पर ही देश ने फिर, आजादी को अपनी पाया था।
उन सबके बलिदानों ने ही इसे, लोकतांत्रिक देश बनाया है।
इसकी संप्रभुता-अखण्डता की, रक्षा अब हमें ही करना है।
इस पावन बेला पर फ़िर से, आओ मिलकर सब प्रण यह लें।
सम्प्रभुता, एकता, अखण्डता देश की, नित - नित हम मज़बूत करें।
जो स्वप्न वीरों ने देखा था, उस सपने को साकार करें।
हम एक नया इतिहास रचें, स्वच्छ - सुंदर देश निर्माण करें।
भारत माँ का श्रृंगार करें, वीरगाथा का गुणगान करें।
नव भारत का निर्माण करें, सारे संसार में नाम करें।
जय भारतभूमि जयगान करें, भारत माँ की जयकार करें।
जय हो भारत, जय हो भारत, वन्दन हम बारम्बार करें।
जय हिंद, जय भारत।
रचयिता
सुप्रिया सिंह,
इं0 प्र0 अ0,
प्राथमिक विद्यालय-बनियामऊ 1,
विकास क्षेत्र-मछरेहटा,
जनपद-सीतापुर।
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ReplyDeleteShandar abhivyakti...
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