हे पालन हारिनी!
हे पालन हारिणी! आरोग्य दायिनी,
जगत जननी! जगदम्बा! सुन लो।
हम सब की अरदास यही है,
करो दुःखों का अन्त हे! मैया।।
आपदा का शमन करो कल्याणी,
गूँजे सब जन-जन की निर्मल वाणी।
हर्षित मन फिर से गाए माँ,
जयकारा शेरावाली, ब्रम्हाणी।।
दामन भर दो, आँगन भर दो,
घर-घर गूँजे माँ तेरा जयकारा।
कन्या पूजन से हो शैल पुत्री माँ,
सबके सब दुःखों का निपटारा।।
ढोलक, झाँझ, मँजीरे खनकें,
फिर मन्दिर में घण्टे गूँजें।
फिर सखियों संग झूमें-गाएँ
नाचे-गायें खुशियाँ मनाएँ।।
साज-सिंगार पे आये बहार,
साड़ी, चुनरी, चूड़ी, बिंदिया।
पाँव महावर से सजे फिर लाल।।
बेंदी, नथनी, कमर-करधनी,
फूलों से हो माँ का सिंगार।
ज्वार, कलश, जोट विच आओ,
ज्योति-पुँज से प्रकाश फैलाओ।।
रूठी क्यों हो माँ तुम हमसे?
हम तो हैं बालक नादान।
कर दो माँ जग का कल्याण,
आ जाओ फिर अबकी बार।।
भूल हुई जो हमसे माता,
क्षमा करो हे दुर्गेश्वरी माता!
तुम हो सबकी भाग्य विधाता,
जग-कल्याण हो भवानी माता।।
रचयिता
मंजरी सिंह,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उमरी गनेशपुर,
विकास खण्ड-रामपुर मथुरा,
जनपद-सीतापुर।
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