हम नूतनवर्ष मनाएँगे
सृष्टि के आरंभ दिवस का, पुनि पुनि हर्ष मनाएँगे।
चैत्र मास की प्रथम तिथि, हम नूतनवर्ष मनाएँगे।
पुष्प पल्लवित झुके हुए द्रुम, मारुत संग करते नर्तन।
कुसुमाकर सम्राट बन गया, पतझड़ का करके मर्दन।
प्रकृति की मोहक छवि सा, अन्तस आकर्ष बनाएँगे।
चैत्र मास की प्रथम तिथि, हम नूतनवर्ष मनाएँगे।
महाशक्ति माँ जगदंबा ने, त्राण हेतु नौ रूप धरे।
अर्पण अपनी श्रद्धा हम, माँ उपवास स्वरूप करें।
मंदिर की देहरी पे झुक, मस्तक स्पर्श कराएँगे।
चैत्र मास की प्रथम तिथि, हम नूतनवर्ष मनाएँगे।
चंद्रगुप्त विक्रमादित्य सा, सम्राट प्रतापी न कोई।
सोने की नगरी भारत में, तब था पापी न कोई।
चक्रवर्ती के राजतिलक का, पर्व सहर्ष मनाएँगे।
चैत्र मास की प्रथम तिथि, हम नूतनवर्ष मनाएँगे।
अपना गौरव विस्मृत करके, तुमने रसातल गमन किया।
विदेशियों से नतमस्तक हो, अपनी रीत का दमन किया।
श्रेष्ठ सनातन संस्कृति को, अब नव उत्कर्ष दिलाएँगे।
चैत्र मास की प्रथम तिथि, हम नूतनवर्ष मनाएँगे।
रचयिता
दीप्ति सक्सेना,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय कटसारी,
विकास खण्ड-आलमपुर जाफराबाद,
जनपद-बरेली।
Nav varsh mangal may ho...Team Mission shikshan samvad ka hardik abhar
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