कस्तूरबा गांधी
कैसे भूल गए उस ममता की प्रतिमूर्ति को,
कैसे भूल गए उस विवेक के प्रतिबिंब को,
क्यों भुला दिया हमने उनके बलिदान को,
क्या बेमानी नहीं होगा भूलना ऐसे इंसान को।
बात करती हूँ यहाँ मैं अदम्य साहसी महिला की,
संबल थी जो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की,
कस्तूरबा गांधी था जिनका सम्माननीय नाम,
11 अप्रैल 1869 में जन्म लिया करनी बात उसकी।
गृहस्थ जीवन था कठिन पर हार ना मानी,
रास ना आई इनको गांधीजी की मनमानी,
बा को सजना सँवरना था बहुत पसंद,
गांधीजी की रोक टोक से हुई ना विचलित बानी।
दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी का साथ निभाया,
गिरफ्तार हुईं पर साहस न कोई तोड़ पाया,
फलाहार से अपना वहाँ जीवन निर्वाह किया,
1915 में भारत आई बा, सबका मन हर्षाया।
1922 में वीरांगना बनकर कमान सँभाली,
क्रांतिकारी गतिविधियों से विस्मित कर डाली,
"भारत छोड़ो आंदोलन" में बा का स्वास्थ्य बिगड़ा,
दिल के दौरे से बा गिरी जैसे टूटी डाली।
22 फरवरी 1944 को फिर एक दौरा आया,
बा के जीवन में फिर सुकून ना लौट पाया,
मूंद ली आँखें, अब शरीर था निढाल,
एक वीरांगना, ममता की मूर्ति को जग ने खोया।
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