पुस्तक
क्षण-प्रतिक्षण की बातें,
बीते पल इतिहास बन जाती हैं
कब, क्या, क्यों, कैसे, कहाँ था,
यह पुस्तक हमें बताती हैं
इस सृष्टि की उत्पत्ति का,
देव-दानव की शक्ति का
अणु-परमाणु की बातें हैं,
पुस्तक से हम जान पाते हैं
हरी-भरी वसुंधरा या,
पर्वत पहाड़ों की रानी है
लहू रंग में सनी धुली,
कितनी ही अमर कहानी है
वीरों की गाथा इसमें,
मातृत्व की शैशव लोरी है
आँचल में छुपी मर्यादा इसके,
जौहर की बहती रवानी है
ज्ञान स्त्रोत की तुम अविरल धारा
संचित करअज्ञानी मन, करती हरा
तन-मन के तू सारे क्लेश मिटाती
तुझमें जो रमा फिर कभी न हारा
सुख-दुख का तुम पाठ पढ़ाती
अच्छे बुरे का हमें राह दिखाती
जलधी सी गहराई तुझमें
जो डूबे, इल़्म के मोती लुटाती
तुझमें वेद ऋचाएँ उपनिषद बसते
शास्त्रों पुराणों की अमृत वाणी है
ब्रह्मांड की हर स्मृति है तुझसे
धरोहर निधि की तू वीणापाणी है
रचयिता
वन्दना यादव "गज़ल"
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक,
विकास खण्ड-डोभी,
जनपद-जौनपुर।
Comments
Post a Comment