जलियांवाला बाग नरसंहार
आज बरसी उस भीषण क्षण की,
जिसमें निष्ठुरता रोई होगी।
दर्द भी कराहा होगा,
निर्ममता भी चीखी होगी।।
निहत्थों के क्रूर दमन का,
निशां आज भी बाकी है।
ब्रिटिश इतिहास के काले अध्याय का,
जलियांवाला बाग साक्षी है।।
13 अप्रैल सन 1919,
बैसाखी का दिन था।
रोलेट एक्ट के विरोध में,
उमड़ा जनसमूह था।।
माँग रहे थे वो अधिकार,
प्रदर्शन शांतिपूर्ण था।
सत्यपाल किचलू की,
गिरफ्तारी का आक्रोश था।।
मद में चूर डायर ने,
फायरिंग का आदेश दिया।
घेरा बाग गोलियाँ चला दीं,
हाय तूने क्या किया।।
बड़े बूढ़े औरतें नाबालिग,
कोई भी बचा न था।
सुना है मरने वालों में,
6 सप्ताह का मासूम भी था।।
पास बना था एक कुआँ,
कुछ उसमें भी कूद गए।
120 लाशें मिलने पर,
शहीदी कुआँ नाम हुआ।।
इस क्रूरता का विरोध
विश्वव्यापी हुआ,
टैगोर ने लौटाई नाइट उपाधि,
असहयोग प्रारंभ हुआ।।
भारत सरकार ने याद में,
है स्मारक बनवाया।
लौ के रूप में मीनार पर,
नाम शहीदों का लिखवाया।।
इतिहास के पन्नों का वह,
काला दिन फिर आया है।
नमन शहीदों को ज्योति का
कलम ने भी शीश नवाया है।।
रचयिता
ज्योति विश्वकर्मा,
सहायक अध्यापिका,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय जारी भाग 1,
विकास क्षेत्र-बड़ोखर खुर्द,
जनपद-बाँदा।
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