नन्हें मित्र
ये प्यारे-प्यारे नन्हें मुन्ने,
बरबस मन मोह लेते हैं।
मधुर-मधुर मुस्कान लिए,
जब पास हमारे होते हैं।
थोड़े चुलबुले, थोड़े नटखट,
होते हैं प्यारे बच्चे।
स्वार्थ ना कोई होता दिल में,
होते हैं मन के सच्चे।
देख इन्हें फिर हमको भी,
बचपन याद आता है।
कुछ पल लिए दिल अपना भी,
बच्चा बन जाता है।
छल, कपट और दिखावा,
इनको तनिक ना आता है।
खेल खिलौने, यारों संग मस्ती,
इनको यही बस आता है।
किया अचम्भित आज मुझे,
इन प्यारे से बच्चों ने।
सुबह-सुबह आ पहुँचे घर में,
लेकर गुलाल हाथों में।
मीठी सी मुस्कान लिए फिर,
मुझसे बोले ये बच्चे।
संग आपके होली खेलने,
आए हैं हम बच्चे।
सुनकर ये फ़रमाइश प्यारी,
मन मेरा भी डोला।
छोड़ा काम किचन का सारा,
और दुनियादारी को छोड़ा।
मैं बैठ गई फिर बच्चों की,
प्यारी टोली के बीच।
सबने गुलाल लगाकर मेरा,
दिल भी लिया फिर जीत।
रहो सदा खुशहाल यूँ ही,
मेरे प्यारे नन्हें मित्र।
यूँ ही फैलाते रहना जग में,
निश्छलता का इत्र।
हो जाएँ सपने पूरे तुम्हारे,
है यही दुआ मेरी।
करती हूँ कामना ईश्वर से,
तुम्हें लग जाए उम्र मेरी।
रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।
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