मंगल पांडे
गाथा है एक वीर की,
जो आसमान में खो गया।
क्रांतियज्ञ आरंभ कर,
टॉर्च बियरर हो गया।।
सन् 1831 तारीख 30 जनवरी,
उत्तर प्रदेश के बलिया में।
जन्मा था वह लाल जिसके,
पिता दिवाकर माँ अभय रानी।।
गुलामी की जकड़न को,
बचपन से महसूस किया।
बैरकपुर की छावनी में,
सिपाही बन भर्ती हुआ।।
एक सुबह थी बह रही,
हुगली पावन सुहानी।
चर्बी वाले कारतूस की खबर ने,
मन में जला दी क्रोधाग्नि।।
मना किया कारतूस चलाने से,
किया विद्रोह का शंखनाद।
बने प्रथम स्वतंत्रता सेनानी,
हुए अमावस में पूर्णिमा का चाँद।।
बात पहुँची जब,
अंग्रेजों के कान में।
पता चला विद्रोह का,
नायक है मंगल पांडे।।
रेजीमेंट के अफसर,
बाग को घायल किया।
जनरल ने ईश्वरी को,
गिरफ्तारी का आदेश दिया।।
मन में सोचा हाथ ना आऊँ,
इन धूर्त अंग्रेजों के।
स्वयं को मार ली गोली,
एक पल भी बिना सोचे।।
पर विधि विधान को,
कुछ और ही मंजूर था।
अंग्रेजों के लिए देश में
आक्रोश भी भरना था।।
गोली लगने से पांडे घायल हुए,
आठ अप्रैल अट्ठारह सौ सत्तावन;
मंगल फाँसी चढ़ अमर हुए।
देश धर्म की शान में,
विद्रोह का जो बीज बो दिया।
हो प्रभावित छावनी का,
हर सिपाही पांडे हो गया।।
कंपनी की चूलें हिलाईं,
क्रांति का आरंभ किया।
1984 में सरकार ने आपके,
सम्मान में डाक टिकट जारी किया।।
रचयिता
ज्योति विश्वकर्मा,
सहायक अध्यापिका,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय जारी भाग 1,
विकास क्षेत्र-बड़ोखर खुर्द,
जनपद-बाँदा।
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