राहुल सांकृत्यायन
सुनो कहानी तुम्हें सुनाएँ,
एक युगपरिवर्तनकार की।
इतिहासकार बहुभाषाविद् ,
तत्वान्वेषी यात्राकार की।।
नौ अप्रैल सन् अट्ठारह सौ तिरानवे
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में,
राहुल जन्मे माँ कुलवंती,
पिता गोवर्धन के धाम में।।
बाल्यकाल में राहुल का,
केदारनाथ था नाम।
नाना-नानी ने किया पालन,
जब हुआ माँ का देहावसान।।
बालपन में ब्याह की,
प्रतिक्रिया कुछ यूँ रही।।
घर छोड़ बने दामोदर साधु,
संपूर्ण भारत की यात्रा की।।
1930 में श्रीलंका में दामोदर,
बौद्ध धर्म को आकृष्ट हुए।
नाम हुआ त्रिपिटकाचार्य,
बौद्ध धर्म से दीक्षित हुए।।
काशी के पंडितों को,
तर्कशास्त्र से प्रभावित किए।
मिली उपाधि महापंडित की,
महापंडित राहुल सांकृत्यायन बने।।
अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव,
बन राजनीति में कदम धरा।
पर जीवन का मूल मंत्र था
रचनाधर्मिता और गतिशीलता।।
सन 1937 में लेनिनग्राड में,
बने संस्कृत के अध्यापक।
1950 में आए नैनीताल,
यायावरी था जीवन।।
वोल्गा से गंगा और
कनैला की कथा कहानी।
किन्नर देश की ओर यात्रा वृतांत,
अतीत से वर्तमान थी जीवनी।।
तिब्बत की यात्रा से,
विपुल साहित्य ले आए।
'ग्लोबल विलेज' के काल में,
राहुल दुर्गम यात्राएँ कर आए।।
साहित्य अकादमी पद्म भूषण,
डाक टिकट भी शान में आए।
14 अप्रैल 1963 को हमने,
यात्रा साहित्य के पितामह खोए।।
रचयिता
ज्योति विश्वकर्मा,
सहायक अध्यापिका,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय जारी भाग 1,
विकास क्षेत्र-बड़ोखर खुर्द,
जनपद-बाँदा।
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