रामनवमी
जग को शिक्षा देने के लिये, जन्मे कौशल्या के लाल,
पुत्र धर्म निर्वाह को, वचन सिरमाथे कर हुए निहाल।
अटल प्रेम अनुराग से, सिय संग रचायो ब्याह,
पति संग सुकुमारी चली, जंगल-जंगल कंटक राह।
राज-पाठ ठुकरा कर, किया पत्नी धर्म निर्वाह,
रघुनाथ बसे हीय सिय के, फिर काहे करें परवाह।
मिट्टी माथे तिलक लगाये, रघुकुल के युवराज,
पितृ वचन निभाने को, सस्वर दिया आवाज।
मनका-मनका बिखर रहा, अश्रुधार अब कौशल्या की,
हृदय विदारक विच्छेद था, लीं जिसकी बल्ईया कभी।
पृथ्वी के इस रंगमंच पर, अभिनय खूब निभाये राम,
असुरों का संहार किया, सत्य की आन बचाये राम।
मर्यादा अरु धर्म के, धैर्य बना कर अमोघशस्त्र,
शरणागत को प्रेम दिया, अखिल विश्व कृपा पात्र।
रघुनंदन की छवि अनुप, कमल नयन अभिराम,
रघुवंशमणि सीता रमण को, कोटि-कोटि प्रणाम।
रचयिता
वन्दना यादव "गज़ल"
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक,
विकास खण्ड-डोभी,
जनपद-जौनपुर।
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