गंगा अवतरण
प्रवाह तेरा निर्मल अविरल
युगों से बहता कलकल- कलकल,
तारन करने सकल जगत को,
हुआ धरा पर गंगा अवतरण।
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि,
लाये तुम्हे भगीरथ जी,
कहलाती तुम धरा पर तब से,
पतित- पावनी गंगा नदी
प्रवाह तेरा--------अवतरण।
निवास तेरा शिव की जटा में,
उद्गम है गंगोत्री पावन,
सिंचित करती जाती "भू" को,
मिल जाती सागर में जाकर।
प्रवाह तेरा---------अवतरण।
नदी नहीं संस्कार है गंगा,
भारत की संस्कृति है गंगा,
जब तू चलती, जीवन चलता,
बूँद-बूँद अमृत है गंगा।
प्रवाह तेरा---------अवतरण।
बहुत बढ़िया मैडम
ReplyDeleteImpressionate
ReplyDeleteNice poem 👌👍🙏
ReplyDeleteNice
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