गंगा अवतरण

प्रवाह तेरा निर्मल अविरल
युगों से बहता कलकल- कलकल, 
तारन करने सकल जगत को, 
 हुआ धरा पर गंगा अवतरण।

   ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि, 
    लाये तुम्हे भगीरथ जी, 
   कहलाती तुम धरा पर तब से,                        
    पतित- पावनी  गंगा नदी

प्रवाह तेरा--------अवतरण।

    निवास तेरा शिव की जटा में, 
    उद्गम है गंगोत्री पावन, 
    सिंचित करती जाती "भू" को, 
    मिल जाती सागर में जाकर।

प्रवाह तेरा---------अवतरण।

    नदी नहीं संस्कार है गंगा, 
    भारत की संस्कृति है गंगा, 
    जब तू चलती, जीवन चलता, 
     बूँद-बूँद अमृत है गंगा।

प्रवाह तेरा---------अवतरण।

रचयिता
दीपा जोशी,
सहायक अध्यापक,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय ढकिया नंबर एक, 
विकास खण्ड-काशीपुर,
जनपद-ऊधम सिंह नगर,
उत्तराखण्ड।

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