काश हम भी बादल होते

काश हम भी बादल होते,
खुले आसमान में रहते।
उमड़ घुमड़कर शोर मचाते,
गरज-गरज कर जल बरसाते।
प्यारी वसुंधरा प्यासी ना रहती,
नदी नाले जल भर देते।
धरती माता हरी हो जाती,
सुन्दर-सुन्दर पुष्प खिलाते।
बालक सब खुश हो जाते,
इठलाते फिरते मुस्काते।
काश, हम भी बादल होते,
उमड़ घुमड़कर शोर मचाते।

रचयिता
सीमा अग्रवाल,
सेवानिवृत्त सहायक अध्यापिका,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय हाफ़िज़पुर उबारपुर,
विकास क्षेत्र - हापुड़,
जनपद - हापुड़।

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