ऐ ईद तुम जब भी आना

ऐ ईद तुम जब भी आना,
सबके लिये खुशियाँ लाना।
हर चेहरे पर हँसी सजाना,
हर आँगन में फूल खिलाना।
खुदा हो जाए सब पर मेहरबां,
दुःख दूर हो ऐसी बहार लाना।
परिस्थितियों ने सब बन्द किया है,
ईद का जश्न अब नहीं मनाना।
कपड़े नये नहीं पर खास होंगे,
खुशी की घड़ी है पर हाथ न मिलाना।
भुलाकर मज़हब की तकरारें,
मोहब्बत और मेल मिलाप सिखाना।
साल में एक बार जब तुम आना,
ईदी के संग कुछ उपहार दे जाना।
गले न मिलना पर ईद मिलना ज़रूर,
मीठे पकवान और सिवईयाँ भी खाना।
ऐ ईद तुम जब भी आना।
सबके लिये बस खुशियाँ ही लाना।

रचयिता
आसिया फ़ारूक़ी,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय अस्ती,
नगर क्षेत्र-फतेहपुर,
जनपद-फतेहपुर।

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