भारत माँ की पुकार
आशीषों का आँचल भरकर, प्यारे बच्चों लाई हूँ।
युग जननी मैं भारत माता, द्वार तुम्हारे आई हूँ।
तुम ही मेरे भावी रक्षक, तुम ही मेरी आशा हो।
तुम ही मेरे भाग्य विधाता, तुम ही मेरे प्राण हो।
मर्यादा और त्यागशील का, पाठ मिला रघुराई से।
कर्म भक्ति का पाठ्य मिला है, तुमको कृष्ण कन्हाई से।
भीष्म पितामह ने सिखलाया, किसे प्रतिज्ञा कहते हैं।
ज्ञान शिक्षा का मिला तुमको, बाबा साहब की पढ़ाई से।
सांगा की साँसें चलती हैं, वीर तुम्हारी छाती में।
मुझे वचन दो करो प्रतिज्ञा, मेरा मान बढ़ाओगे।
युगों-युगों तक बेटे बनकर, सुख मुझको पहुँचाओगे।
रचयिता
सुमन,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय निस्तौली-२,
विकास खण्ड-लोनी,
जनपद-गाजियाबाद।
युग जननी मैं भारत माता, द्वार तुम्हारे आई हूँ।
तुम ही मेरे भावी रक्षक, तुम ही मेरी आशा हो।
तुम ही मेरे भाग्य विधाता, तुम ही मेरे प्राण हो।
मर्यादा और त्यागशील का, पाठ मिला रघुराई से।
कर्म भक्ति का पाठ्य मिला है, तुमको कृष्ण कन्हाई से।
भीष्म पितामह ने सिखलाया, किसे प्रतिज्ञा कहते हैं।
ज्ञान शिक्षा का मिला तुमको, बाबा साहब की पढ़ाई से।
सांगा की साँसें चलती हैं, वीर तुम्हारी छाती में।
मुझे वचन दो करो प्रतिज्ञा, मेरा मान बढ़ाओगे।
युगों-युगों तक बेटे बनकर, सुख मुझको पहुँचाओगे।
रचयिता
सुमन,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय निस्तौली-२,
विकास खण्ड-लोनी,
जनपद-गाजियाबाद।
ये रचना तो आज से लगभग 35 साल से भी ज्यादा पुरानी है जिसकी यहां कुछ शब्द बदलकर नकल की गई है
ReplyDeleteसही है
Deleteमैंने मेरे पिताजी की पुस्तक में ये कविता पूरी पढ़ी है
5th class me parhe the path ka Nam aahwaan
ReplyDeleteBalkavi Bairagi ne likhi thi .MP Board mai 5th mai thi
Deleteआधा अधूरा याद है जी आपको.....
ReplyDeleteजी यह कविता बहुत पुराना है मेरे जीजाजी मुझे सुनाया करते है
ReplyDeleteयह आपकी रचना नही है
कम से कम नकल तो अक्ल से कीजिये आदरणीया
ReplyDeleteये बालकवि वैरागी की रचना है, आप अपना श्रेय ऐसे ही लूट रही है।नानी के आगे नानिहारेकी बात। ये मेरे मोहल्ले के कवि हैं
ReplyDelete1995 मे मैनें अपने बाल भारती कक्षा 5 मे,पाठ 1 "आह्वान" नामक शीर्षक से ये कविता पढी थी।ये आपकी मौलिक रचना नहीं है, इसलिये इसके नीचे आपको रचयिता लिखना शोभा नही देता, आप संकलित लिखिए।
ReplyDeleteआपके लिये सही रहेगा।
आप की बात सही है मै भी कक्षा 5 में पढ़ा था ।
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