ऐसी ईद अब फिर न आए

दूर रहकर सब ईद मनाए,
पास आने पर जी घबराए,
खुशी को प्रकट न कर पाए,
ऐसी ईद अब फिर न आए।
सिवईं बनाकर खुद ही खाए,
गले किसी से मिल न पाए,
नन्नू, ननकी को ईदी दे न पाए,
ऐसी ईद अब फिर न आए।
राम का मन भारी हुआ जाए,
रहीम से अबकी न मिल पाए,
फोन से ही सब रस्म निभाए,
ऐसी ईद अब फिर न आए।
अगली ईद सब गले मिलेंगे,
अल्लाह से अब दुआ यही है,
नमाज़ पढ़ने सब ईदगाह जाएँ,
ऐसी ईद अब फिर न आए।
जन-जन है अभी परेशान सा,
संकट से सहमा, हैरान सा,
संकटमुक्त भारत हो जाए,
ऐसी ईद फिर कभी न आए।

रचयिता 
आमिर फारूक,
सहायक अध्यापक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय औरंगाबाद माफ़ी,
विकास खण्ड-सालारपुर, 
जनपद-बदायूँ।

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