पुष्प दिवस व मधुमक्खी दिवस
फूल हमें हमेशा ताजगी देता।
मुस्कुराते रहने का संदेश है देता।।
काँटों में भी खिल सकते हैं, ऐसी किस्मत लाते हैं।
नहीं शिकायत कभी किसी से, यूँ ही सदा मुस्कुराते हैं।।
फ्लोरीकल्चर कहते हैं इसके अध्ययन को।
रंग- बिरंगा कर देता है देखो ये कुदरत को।।
इसके साथ मधुमक्खी दिवस भी मनाया जाता।
इसका अध्ययन देखो एपिकल्चर है कहलाता।।
तीन मधुमक्खियों से मिलकर इनका बनता परिवार।
रानी, नर तथा श्रमिक मधुमक्खी से रहता गुलजार।।
रानी मधुमक्खी बड़ी चमकीली अंडे देते जाती है।
श्रमिक मक्खी शहद बनाकर छत्ते सजाती है।।
मधुमक्खी है देखो कीट वर्ग में आती।
दुनिया में ये हर पल नई पहचान बनाती।।
भुनगा या डम्भर छोटी मधुमक्खी होती।
करती है प्रयास फिर भी शहद कम होती।।
सारंग के छत्ते से 50 किलो तक शहद निकलता।
इन्ही के छत्तों को निकालते जिससे मोम बनता।।
मधुमक्खी के उत्पादों से कितनों का घर चलता।
कभी मोम कभी औषधि तो कभी शहद बनता।।
रचयिता
सुधांशु श्रीवास्तव,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मणिपुर,
विकास खण्ड-ऐरायां,
जनपद-फ़तेहपुर।
मुस्कुराते रहने का संदेश है देता।।
काँटों में भी खिल सकते हैं, ऐसी किस्मत लाते हैं।
नहीं शिकायत कभी किसी से, यूँ ही सदा मुस्कुराते हैं।।
फ्लोरीकल्चर कहते हैं इसके अध्ययन को।
रंग- बिरंगा कर देता है देखो ये कुदरत को।।
इसके साथ मधुमक्खी दिवस भी मनाया जाता।
इसका अध्ययन देखो एपिकल्चर है कहलाता।।
तीन मधुमक्खियों से मिलकर इनका बनता परिवार।
रानी, नर तथा श्रमिक मधुमक्खी से रहता गुलजार।।
रानी मधुमक्खी बड़ी चमकीली अंडे देते जाती है।
श्रमिक मक्खी शहद बनाकर छत्ते सजाती है।।
मधुमक्खी है देखो कीट वर्ग में आती।
दुनिया में ये हर पल नई पहचान बनाती।।
भुनगा या डम्भर छोटी मधुमक्खी होती।
करती है प्रयास फिर भी शहद कम होती।।
सारंग के छत्ते से 50 किलो तक शहद निकलता।
इन्ही के छत्तों को निकालते जिससे मोम बनता।।
मधुमक्खी के उत्पादों से कितनों का घर चलता।
कभी मोम कभी औषधि तो कभी शहद बनता।।
रचयिता
सुधांशु श्रीवास्तव,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मणिपुर,
विकास खण्ड-ऐरायां,
जनपद-फ़तेहपुर।
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