हमारे संवेदी अंग
आओ बच्चों हम सब जाने संवेदी अंगों को।
पाँच हमारे हैं अंग संवेदी, आज तुम यह जानो।
प्रथम कान हैं प्यारे बच्चों जिनसे सुनते हम आवाज,
इनसे सुने हम गुरुओं की वाणी और सबकी बात।
दूजी जीभ है मेरे प्यारों जिससे लेते हैं हम स्वाद,
खट्टा मीठा हो चाहे नमकीन, इसका ना कोई दूजा मेल।
तीजी है त्वचा हमारी बच्चों, जिससे छूते हम हर चीज,
ठंडा, गरम, कठोर, मुलायम कराए हमको इनका एहसास।
चौथी अपनी दो प्यारी आँखें, जिनसे देखें दुनिया सारी,
बिन इनके दुनिया बेरंगी, कैसे देखें हम रंग सतरंगी।
पाँचवी अपनी है प्यारी नाक, जिससे लेते हैं हम साँस,
सुगंध, दुर्गंध का कराए ज्ञान, और ये है अपने चेहरे की शान।
रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।
पाँच हमारे हैं अंग संवेदी, आज तुम यह जानो।
प्रथम कान हैं प्यारे बच्चों जिनसे सुनते हम आवाज,
इनसे सुने हम गुरुओं की वाणी और सबकी बात।
दूजी जीभ है मेरे प्यारों जिससे लेते हैं हम स्वाद,
खट्टा मीठा हो चाहे नमकीन, इसका ना कोई दूजा मेल।
तीजी है त्वचा हमारी बच्चों, जिससे छूते हम हर चीज,
ठंडा, गरम, कठोर, मुलायम कराए हमको इनका एहसास।
चौथी अपनी दो प्यारी आँखें, जिनसे देखें दुनिया सारी,
बिन इनके दुनिया बेरंगी, कैसे देखें हम रंग सतरंगी।
पाँचवी अपनी है प्यारी नाक, जिससे लेते हैं हम साँस,
सुगंध, दुर्गंध का कराए ज्ञान, और ये है अपने चेहरे की शान।
रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।
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