रोशनी में नहाई-नहाई डगर

गुरू पूर्णिमा

गुरू शब्द 'गुरुता' अथवा गौरव का प्रतीक है। वह अज्ञान -अंधकार को मिटाकर अपने शिष्य में ज्ञान का प्रकाश भरता है। अपनी-अपनी श्रद्धानुसार लोग अलौकिक अथवा लौकिक जनों को अपना गुरू स्वीकार करते हैं। कोई कहता है "कृष्णं वन्दे जगत्गुरुं" कोई शिव को, कोई राम आदि को अपना गुरु मानता है। चूँकि परमात्मा भी गुरुता का प्रतीक है। अस्तु उसे भी गुरू शब्द से सम्बोधित किया जाता है।
भगवान दत्तात्रेय ने अनेक छोटे-छोटे जीवों को भी अपना गुरू स्वीकार किया है।
   उनका मान्यता थी--'जो भी हमें सीख दे सके। हमारे जीवन को परिमार्जित कर सके। वही गुरू पद का अधिकारी है।'
आज महान गुरूओं की कृपा से उनके शिष्यों की पहचान समाज में बनी हुई है। आप देखिए!  ......
गुरू वरन्तु के शिष्य कौपीन धारी कौत्स्य जब महाराज रघु के पास पहुँचते हैं तो वह अपने सिंहासन से उठ कर खड़े हो  जाते हैं और आश्रम की  कुशल वार्ता पूछने के उपरांत  वो पूछते हैं कि--'मंत्र दृष्टा ऋषियों  में अग्रगण्य  आपके गुरू देव कुशल से तो हैं? जिनके द्वारा आपने समस्त ज्ञान उसी प्रकार प्राप्त किया है जैसे सारा संसार सूर्य से प्रबोध प्राप्त करता है। संसार ये स्वीकार करता है कि  गुरू ही वह तत्व है जो हमें परमात्मा का साक्षात् कराने में समर्थ है।
"अखण्ड मण्डलाकारम्,
व्याप्तम्  येन चराचरम।
तत् पदं दर्शितम् येन,
तस्मानिया श्री गुरूवे नमः।
शायद गुरू की इसी शक्ति को स्वीकार करते हुए कबीर दास जी ने लिखा है--
'तीन लोक नव खण्ड में,
गुरू से बडा़ न कोय।
कर्ता करे न करि सके,
गुरू करें सो होय।
आज हम गुरूओं के नये संस्करण शिक्षकों  में भी गुरूता और आचार्यत्व की कल्पना करते हैं और उसे ब्रह्मा, विष्णु और शंकर  उपाधि देकर सम्मानित करतें हैं।
 ब्रह्मा इसलिए है--क्योंकि वह बालक को नवीन संस्कारिक जीवन प्रदान करता है।
 वह विष्णु इसलिए है--उसकी समस्त जिज्ञासाओं का शमन कर शिक्षक उसकी आंतरिक शक्तियों का पालन कर नवीन दिशा प्रदान करता है।
 वह शंकर भी है क्योंकि वह बालक की अशुभ वृति्यों, अवांछित तत्वों का विनाश कर उसमें शिवत्व की स्थापनाओं करता है।
अंत में सभी से यह निवेदन करना चाहती हूँ---
मानस में यदि भरा तुम्हारे,
गुरूवर का विश्वास अटल है।
जीवन के पथ में बढ़ने की,
यदि अंतर में साध प्रबल है।
तो गुरू की ज्ञान बल्लरियों से ही,
तुम लहरों की गति मोड़ सकोगे
जीवन पथ में  मिलने वाली,
चट्टानों को तोड़ सकोगे।

श्री गुरूवे नमः

लेखिका
डॉ0 प्रवीणा दीक्षित,
हिन्दी शिक्षिका,
के.जी.बी.वी. नगर क्षेत्र,
जनपद-कासगंज।

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