बेटियाँ

कहने को तो बेटों से, कम महत्व रखती हैं बेटियाँ।
खोखले समाज की मान्यता में, वंश न चलाती बेटियाँ।
पर सोचकर देखो, एक घर में अनेक भूमिकाएँ निभाती हैं बेटियाँ।
आन- बान हर घर की, इज्ज़त समझी जाती हैं बेटियाँ।
बिन बेटी घर-आँगन सूना, हर बाग-बगीचा सूना।
हर गली-गलियारा सूना, हर रस्ता-चौबारा सूना।
हर माँ का है आँचल सूना, हर एक पिता की गोद है सूनी।
हर भाई की कलाई है सूनी, हर बहन की आस है सूनी।
बेटी न होती तो पत्नी बन, सत्यवान के प्राण बचाता कौन।
बेटी न होती तो हर युग में देवी बन असुरों से बचाता कौन।
बेटी न होती तो भाई की सूनी कलाई पर राखी बाँधता कौन।
बेटी न होती तो हर तीज- त्यौहार पर चौखट किसका रस्ता तकती।
बेटी न होती तो हर माँ का सम्बल कौन बनती।
बेटी न होती तो पीहर से डोली किसकी उठती।
बेटी न होती तो परिवार हर सदस्य का ख्याल कौन रखती।
आज जग में हर क्षेत्र में बेटों से आगे हैं बेटियाँ।
कंधे से कंधा मिलाकर, जम्मेदारियाँ निभाती हैं बेटियाँ।
डॉक्टर, इंजीनियर, पाइलट, साइंटिस्ट और प्रोफेसर हैं बेटियाँ।
शेफ़, नर्स, ड्राइवर ब्यूटीशियन और बाई न जाने क्या- क्या हैं बेटियाँ।
देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने को बेटे समान आतुर हैं बेटियाँ।
जल थल वायु सैन्यशक्ति में भी परचम लहराती हैं बेटियाँ।
बेटा तो बेटी न कहला सकता, पर बेटा कहलाती हैं बेटियाँ।
इज्ज़त बन घर की, हर फ़र्ज निभाती हैं बेटियाँ,
सहारा बन अपने माँ-बाप का, कर्ज उतारती हैं बेटियाँ।
पत्नी बन अपने हमसफ़र का, साथ निभाती हैं बेटियाँ।
जन्म दे नव जीवन को, माँ का फ़र्ज निभाती हैं बेटियाँ।
हर मुसीबत में ढाल बन, बहन का फ़र्ज निभाती हैं बेटियाँ।
परिवार की जिम्मेदारी उठा, बहू बन जाती हैं बेटियाँ।
सास - ससुर को माँ-बाप बना, मैके को अलविदा कर जाती हैं बेटियाँ।
ननद को बहन देवर को भाई का दर्जा दे, भाभी बन जाती हैं बेटियाँ।
सबको खुश करने के चक्कर में, अपना दुःख भूल जाती हैं बेटियाँ।
सबको वक़्त पर सब देने के चक्कर में, अपने को वक़्त देना भूल जाती हैं बेटियाँ।
बच्चों को पालते-पालते, दिन-रात का चैन लुटा देती हैं बेटियाँ।
हर रिश्ता हर फर्ज़ निभाते- निभाते, अपना सुकून खो देती हैं बेटियाँ।
इतने सारे फ़र्ज़ और जिम्मेदारियाँ अकेले निभाती हैं बेटियाँ।
फ़िर भी दान-दहेज़ के लालच में, क्यों रोज़ जलाई जाती हैं बेटियाँ।
पुरुषों की हवस का शिकार, क्यों बनाई जाती हैं बेटियाँ।
चुप-चाप हर दर्द, हर सितम सहने को, क्यों मजबूर की जाती हैं बेटियाँ।
बाप के घर में इज्ज़त की रखवाली, क्यों बनाई जाती हैं बेटियाँ।
ससुराल में डोली में आई है अर्थी पर जाने को क्यों छोड़ दी जाती हैं बेटियाँ।
बेटे समान हक पाने को, क्यों नही अधिकारी हैं बेटियाँ।
बहू तो चाहिए बेटे के लिये, पर खुद की क्यों न चाहते हैं बेटियाँ।
समाज में तिरस्कार से बचने को, क्यों कोख में मार दी जाती हैं बेटियाँ।
इस अनुत्तरित सवाल का जवाब पाने को, बेताब हैं बेटियाँ।
इस अनसुलझे सवाल का जवाब पाने को, बेताब हैं बेटियाँ।

रचयिता
सुप्रिया सिंह,
इं0 प्र0 अ0,
प्राथमिक विद्यालय-बनियामऊ 1,
विकास क्षेत्र-मछरेहटा,
जनपद-सीतापुर।

Comments

Total Pageviews