मेरे पापा
पापा संग अठखेलियाँ यूँ
प्यारी मुझको लगती हैं।
जैसे कोई तितली रानी,
उड़ती खूब मचलती है।।
नन्हीं चिड़िया बन पापा की,
बाहों में खो जाती हूँ।।
जुगनू बनकर के पापा को
लोरी खूब सुनाती हूँ।।
थक कर जब मेरे पापा
मृदु सपनों में खो जाते हैं।
वक्षस्थल को बना बिछौना
मुझको साथ सुलाते हैं।।
प्यारी बेटी मैं पापा की,
प्रति दिन शान बढ़ाऊँगी।
आसमान से बातें करती,
निर्भय बढ़ती जाऊँगी।।
रचयिता
प्रार्थना मिश्रा,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय नगला हरिकेशी,
विकास खण्ड-खंदौली,
जनपद-आगरा।
प्यारी मुझको लगती हैं।
जैसे कोई तितली रानी,
उड़ती खूब मचलती है।।
नन्हीं चिड़िया बन पापा की,
बाहों में खो जाती हूँ।।
जुगनू बनकर के पापा को
लोरी खूब सुनाती हूँ।।
थक कर जब मेरे पापा
मृदु सपनों में खो जाते हैं।
वक्षस्थल को बना बिछौना
मुझको साथ सुलाते हैं।।
प्यारी बेटी मैं पापा की,
प्रति दिन शान बढ़ाऊँगी।
आसमान से बातें करती,
निर्भय बढ़ती जाऊँगी।।
रचयिता
प्रार्थना मिश्रा,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय नगला हरिकेशी,
विकास खण्ड-खंदौली,
जनपद-आगरा।
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