प्रेमचंद

आज जयंती प्रेमचंद की,
उनकी याद दिलाती है।
जन मन की व्यथा वेदना,
लिख दो यह बतलाती है।
होरी धनिया अमर पात्र हैं,
बैलों की करुण कहानी है।
सवा सेर का कर्ज चुका है,
पर अब भी तो मनमानी है।
शोषण के प्रतिमान नये हैं,
स्थिति यही बताती है।
गोदान नहीं अब होते देखा,
गोधन फिरता आवारा है।
गुल्ली डंडे का खेल नहीं,
क्रिकेट हुआ अब प्यारा है।
जन जीवन की रीति नई है,
ओ बगिया नहीं दिखाती है।
बाग काटकर छाँव मिटी है,
बरसात नहीं अब आती है।
राजनीति के नये रूप हैं,
अपराधी गठजोड़ बनाते हैं।
पंच और परमेश्वर की गरिमा,
अब तार तार कर जाते हैं।
निर्धनता और अमीरी की,
नित खाई बढ़ती जाती है।
प्रेमचंद तुम फिर से आओ,
जन मन पीर बुलाती है।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

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