क्षण का अनुभव
क्षण-क्षण से है जीवन बनता,
क्षण-क्षण का उपयोग करो।
गहरा नाता क्षण-क्षण से हो,
शाश्वत क्षण का संयोग करो।
प्रतिपल वर्तमान को पहचानो,
नित प्रति सजग सचेत रहो।
जीवन का नव संधान करो,
क्षण से जीवन समवेत करो।
मत खोना तुम यह वर्तमान,
इस पर आगत के चित्र बने।
सत्य सहज पाने का अवसर,
क्षण ही तेरा अपना मित्र बने।
बूँद-बूँद को है जाना जिसने
उसने ही सागर को पहचाना।
क्षण को जीते निज को पालो,
है क्षण को अतीत बन जाना।
वर्तमान में साध्य सृजन हो,
नव निर्माणों के हों सपने।
संकल्प अचल मन में लेकर,
तुम चलो लक्ष्य पर अपने।
सकल विश्व में नव परिवर्तन,
क्षण-क्षण इतिवृत्त बनाए।
शाश्वत को है समझा जिसने,
वह जीवन जीवंत बनाए।
जो दीप्तिमान से जग में हैं,
फैलाते प्रकाश वे पग-पग।
उनके है अनमोल कृत्य सब,
बोते नये बीज इस जग अग।
वर्तमान को जीते-जीते अब,
आगत के चित्र बना डालो।
बिखरा दो उपवन में सुगंध,
सीमाएँ सभी मिटा डालो।
मानव जीवन का सत्यबोध,
करके जीवन यह पहचानो।
क्षण-क्षण जीवन क्षण हैं जाते,
कुछ अनुभूति करो जानो।
रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला,
जनपद -सीतापुर।
क्षण-क्षण का उपयोग करो।
गहरा नाता क्षण-क्षण से हो,
शाश्वत क्षण का संयोग करो।
प्रतिपल वर्तमान को पहचानो,
नित प्रति सजग सचेत रहो।
जीवन का नव संधान करो,
क्षण से जीवन समवेत करो।
मत खोना तुम यह वर्तमान,
इस पर आगत के चित्र बने।
सत्य सहज पाने का अवसर,
क्षण ही तेरा अपना मित्र बने।
बूँद-बूँद को है जाना जिसने
उसने ही सागर को पहचाना।
क्षण को जीते निज को पालो,
है क्षण को अतीत बन जाना।
वर्तमान में साध्य सृजन हो,
नव निर्माणों के हों सपने।
संकल्प अचल मन में लेकर,
तुम चलो लक्ष्य पर अपने।
सकल विश्व में नव परिवर्तन,
क्षण-क्षण इतिवृत्त बनाए।
शाश्वत को है समझा जिसने,
वह जीवन जीवंत बनाए।
जो दीप्तिमान से जग में हैं,
फैलाते प्रकाश वे पग-पग।
उनके है अनमोल कृत्य सब,
बोते नये बीज इस जग अग।
वर्तमान को जीते-जीते अब,
आगत के चित्र बना डालो।
बिखरा दो उपवन में सुगंध,
सीमाएँ सभी मिटा डालो।
मानव जीवन का सत्यबोध,
करके जीवन यह पहचानो।
क्षण-क्षण जीवन क्षण हैं जाते,
कुछ अनुभूति करो जानो।
रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला,
जनपद -सीतापुर।
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