प्रकृति का दर्द

कितना निर्मम तू हो गया है,
मुझे काट खुद को आगे बढ़ाता,
तू सोचता है तेरी उन्नति होती,
तू ना जाने कितना धरती ये रोती

मान जा ए इंसान तू
मान जा ए इंसान तू

अपनी धरा क्यों उजाड़ रहा
हमकों जीते जी मार रहा है,
अब तो संभल जा ए मानव
क्यों इतने पेड़ काट रहा है,

मान जा ए इंसान तू
मान जा ए इंसान तू

ना मिलेगी स्वच्छ हवा जो
घुट घुट के मर जाओगे
साँस लेना जब दूभर होगा
करनी पर पछताओगे

मान जा ए इंसान तू
मान जा ए इंसान तू

वक्त ना रहेगा फिर लौट आने को
कुछ ना बचेगा फिरसे पाने को
कोशिशें बची हैं कुछ तो कर लो
खुद को बचाने का जतन कर लो

मान जा ए इंसान तू
मान जा ए इंसान तू

उठ जाओ धरा को निहारों
वृक्ष लगाकर फिर से संवारों
मिल जाएगी शुद्ध हवा
मौसम में कम होगा जहर धुँआ

मान जा ए इंसान तू
मान जा ए इंसान तू

रचयिता
दीपक कुमार यादव,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मासाडीह,
विकास खण्ड-महसी,
जनपद-बहराइच।
मोबाइल 9956521700

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