हृदय-ज्योति

हम न जाने क्यों तलाश मोती को भटकते रहे।
दूसरों को रुलाते और स्वयं सुलगते रहे।।
हृदय अपने को हमने खंगाला नहीं।
स्वार्थियों से अपने को जगाया नहीं।।
खुद लुटते रहे और लुटाते रहे।
चहकते रहे, चहचहाते रहे।।
हम न जाने क्यों तलाश मोती को ------।।
तलवे तक की जमीं को कुरेदा नहीं।
आजू-बाजू से भी हमने पूछा नहीं।।
बस नभ में यूँ ही बसेरा बनाते रहे।
हम न जाने क्यों तलाश मोती को ------।।
जब साथी सच्चे से हमारा हुआ सामना।
फिर उसने दिखाया हमें आईना।।
जिसे तू ढूँढ़ता वो तेरे हृदय में रहे।
हम न जाने क्यों तलाश मोती को भटकते रहे।
दूसरों को रुलाते स्वयं सुलगते रहे।।

रचयिता
नरेन्द्र सैंगर,
सह समन्वयक,
विकास खण्ड-धनीपुर,
जनपद-अलीगढ़।


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