वन्दना
आवाह्न
पूज्य गजानन आइये, माँ ! गौरी के साथ।
हृदयासन में ब्राजिये, वंदउँ ! पद धर माथ।।
वंदउँ! पद धर माथ, बिराजो कंठ शारदे।
यति गति लय दे छन्द,छन्द को अर्थ सार दे।।
कवि कहता"निरपेक्ष", सृजन काव्य करवाइये।
हंसवाहनी संग, गजानन पूज्य आइये।।
वंदना
शारदे! बुद्धि विमल कर दे।
तन-मन के सब, रोग-कष्ट माँ! शीघ्र समन कर दे।
तम हर ले, अंतस प्रकाश से, माँ! जगमग कर दे।।
हंस वाहनी! कविताओं को, मौलिकता वर दे।
छंद प्रवाह, मीड़ लय यति गति, अलंकार जड़ दे।।
सिद्धि दायनी! वीणा वादनी! माँ! सुमधुर सुर दे।
चरण शरण "निरपेक्ष" पड़ा माँ! भाव भक्ति भर दे।।
स्वतंत्रता
स्वतंत्रता मिली कहाँ? जो मुक्ति की है कामना।
मोक्ष की भी कामना को, बाँधती है वासना।
छोड़! मुक्ति मोक्ष निर्वासना की ओर जा।
तू मनुष्य है तो फिर मनुष्यता की ओर जा।।
रचयिता
हरीराम गुप्त "निरपेक्ष"
सेवानिवृत्त शिक्षक,
जनपद-हमीरपुर।
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