विश्व पंछी दिवस
कलरव करते पंछी सारे,
नील गगन में उड़ते सहारे।
दाना चुगते, वो नीड़ मनाते,
श्रम साधक है, हमें बताते।।
क्या खोया, क्या पाया उसने,
स्वप्न सुनारी रोज सजाते।
हार-जीत की परवाह नहीं,
हौसले संग ऊँची उड़ान हैं भरते।।
लक्ष्य क्षितिज टटोलती उनकी,
हर आंधी तूफान से वो लड़ते।
नदी, पहाड़, कानन या उपवन,
पंख पसारे, उड़ते नीलगगन।।
ना रखते दौलत-शोहरत की लालच,
ना नफरत की झलक कहीं दिखाते।
रंग, रूप, पंख, बोली पर गर्व नहीं,
मीठी-वाणी, वो सबको सुनाते।।
स्वच्छंद खग, नभ मे घूमते रहते,
ईर्ष्या की सीमाओं में नहीं रहते।
नदी, जलधि नीर से, प्यास बुझाते,
ऊँच-नीच की भाव, कभी न दिखाते।।
रचयिता
वन्दना यादव "गज़ल"
सहायक अध्यापक,
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक,
विकास खण्ड-डोभी,
जनपद-जौनपुर।
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