तिरंगा

जनगण मन के अधिनायक हो,

आजादी के महानायक हो।

छूता अम्बर लहराये तिरंगा,

उस भारत के बालक हो।।


इश्क करो तो करो वतन से,

आजादी के गूँजें तराने।

मेरा यह तिरंगा झुक ना पाये,

मरते दम तक हों यह सपने।।

गांधी, बिस्मिल, आजाद के सपनों के तुम नायक हो।।।


देहरी युद्ध की हो जहाँ पर,

वहाँ शान से तिरंगा लहराना।

प्राणों की आहुति माँगे मातृभूमि,

तब पीठ दिखाकर मत आना।।

तुम अमर पुत्र इस धरती के, भारत के भाग्य विधायक हो।।


ऐसी रणभेरी बजाना तुम,

नभ का वक्षस्थल फट जाये।

टुकड़े-2 हो जायें तन के,

ये तिरंगा  झुकने ना पाये।।

झुककर सलाम करे ये दुनिया, चरणों में इन्द्रासन हो।।


अरिदल टिकने ना पाये,

जज्बात ऐसा दिखाना तुम।

सोने की चिडिय़ा ना लुट पाये,

चन्द्रगुप्त बन जाना तुम।

वतन पर आँच न आ पाये, इसके तुम प्रतिरक्षक हो।


जीते जी तेरा मान रहे,

मर कर भी सदा अभिमान रहे।

 तू रहे जीवित या ना रहे,

पर इस तिरंगे की शान रहे।

देश धर्म पर मिटने वाले, दुनिया का अभिमान हो।।


तीन रंगों से घिरा हूँ मैं,

उनकी भी कुछ गाथा है।

कोई त्याग, कोई शान्ति,

कोई समृद्धि बताता है।

चक्र के अन्दर चौबीस तीली, उनके तुम प्रतिपालक हो।।


जहाँ कल-कल बहती गंगा हो,

नभ तक लहराता तिरंगा हो।

मोहब्बत की बहती हो यमुना,

जहाँ  हर मानव चंगा हो।।

राम कृष्ण बुद्ध जहाँ जन्मे, उस पावन धरा के बालक हो।।


जिसके सिर का मुकुट हिमालय,

चरणों को धोता सागर।

सूफी संतों, ऋषि मुनियों की,

तपोभूमि वाला भारत।।

सारे जहां के मुल्कों का, मेरा तिरंगा नायक हो।।


रचयिता

अजय विक्रम सिंह, 
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मरहैया,
विकास क्षेत्र-जैथरा,
जनपद-एटा।

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