स्वामी विवेकानन्द

विश्व धर्म सम्मेलन में जब,

                  द्वन्द धर्म का गहराया।

प्रतिनिधित्व भारत का करके, 

               जग में परचम लहराया।।

मेरे प्यारे भाई बहनों,

                 यह सम्बोधन करते ही। 

जीत लिया दिल श्रोताओं का, 

                  पैर  मंच में  धरते ही।।


वाह-वाह जयकारों से तब, 

                  गूँज उठा कोना-कोना।

मन्त्रमुग्ध होकर सब सुनते, 

                   वाणी में जादू - टोना।।

मानवता का पाठ पढ़ाए, 

                   वही श्रेष्ठ सब धर्मों में। 

दीनों मुँह मुस्कान बिखेरे, 

                 वही श्रेष्ठ सब कर्मों में।।


निर्धन कभी नहीं जन होता,

                पौरुष को गढ़ते जाओ। 

लक्ष्य प्राप्ति बिन मत पथ रुकना, 

               द्रुतगति से बढ़ते जाओ।।

मदद सदा वञ्चित शोषित की,

                  सच्ची  ईश्वर  पूजा है।

एक ब्रह्म ही जगत नियन्ता, 

                 और न  कोई  दूजा है।।


शून्य ब्रह्म है,  शून्य धरा है,

           शून्य भानु, शशि, अम्बर भी।  

नीर, वायु, निर्वात शून्य हैं, 

             परमानन्द   दिगम्बर भी।। 

जन्म शून्य से, मृत्यु शून्य है,

              शून्य युक्त  सब भाषाएँ।

शून्य घटाए  शून्य बढ़ाए,

               प्रभुता की परिभाषाएँ।।


ज्ञान शून्य से बढ़े शून्य तक, 

       अजब गजब उपक्रम इसका।

दुर्गुण सद्गुण शून्य समाहित,

            चले चक्र उत्क्रम इसका।।

प्रेम शून्य है द्वेष शून्य है, 

                 चलें शून्य से नाते भी।

वजह शून्य हँसने-रोने में, 

              सभी शून्य से गाते भी।।

           

चन्द्रप्रभा ओजस्वी वक्ता, 

               जनता चातक बनी हुई।

धन्य विवेकानन्द कहें सब, 

          ध्वनि करतल से सनी  हुई।। 

संस्कार विज्ञान ज्ञानमय, 

          'राजयोग' जिनकी पुस्तक। 

ऐसे परम महामानव को, 

             ये 'माधव' है नतमस्तक।।


रचयिता

कवि सन्तोष कुमार 'माधव',

सहायक अध्यापक,

पूर्व माध्यमिक विद्यालय सुरहा,

विकास खण्ड-कबरई,

जनपद-महोबा।

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