शर्म करो
इंसान नहीं हैवान हैं वो,
जो इंसान बेचते हैं।
अपने स्वार्थ सिद्धि की खातिर,
अपना ईमान बेचते हैं।
चिकनी चुपड़ी बातों में फँसा,
बच्चे और जवान बेचते हैं।
ना डर ना कोई भय उनको,
छुप के नहीं खुलेआम बेचते हैं।
कभी कराते मेहनत मजदूरी,
कभी वेश्यावृत्ति कराते हैं।
मासूम सी कोमल काया पर,
कितने ही जुल्म ढहाते हैं।
जरा शर्म करो ओ हैवानों,
ना ये घिनौना काम करो।
ना मानवता को इस जग में,
ऐसे तुम बदनाम करो।
हक जीने का सबको है,
उन्हें जीने दो खुशहाली से।
गुजरे ना कोई कष्टों से,
और बुरी बदहाली से।
अब बंद करो ये धंधे पुराने,
जग में कुछ अच्छे काम करो।
मानव हो मानवता का तुम,
जीवन में सदा सम्मान करो।
रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।
Comments
Post a Comment