बालिका दिवस
आज हम सब मिलकर
बालिका दिवस मना रहे हैं
कितनी महत्वपूर्ण हैं लड़कियाँ
यही बतलाना चाह रहे हैं
माँ की दुलारी, पापा की परी
इसके बिना ना दुनिया चली
जीवन का आधार है यह
इससे ही संसार है यह
बेटी है तभी वंश बेल बढ़ी
इसके बिना क्या दुनिया होती कभी?
बेटियाँ हर घर की शान हैं
हम सबका अभिमान हैं
दो जीने का अधिकार इन्हें
मारना नहीं कोख में इन्हें
यही तो जीवन दात्री है
फिर क्यों ना तुम्हें यह भाती है
धरती हो या आकाश में यह
हर जगह ही तो नजर आती है
होकर कामयाब हमेशा
परचम अपना लहराती है।
बताओ तो क्या है कोई ऐसी जगह
जहाँ पैर ना पड़े हों बेटियों के
है कोई ऐसा काम जो
पहुँच से दूर हो बेटियों के
सब जगह सफल यह होती है
माता-पिता का मान बढ़ाती हैं
काम कितना भी हो कठिन
पीछे कभी ना हटती हैं
बताओ तो फिर भी ओ मानव
क्यों आँखों में तुम्हारे यह खटकती हैं?
देवी है, करूणामयी, ममता का है यह सागर
हर दुःख और मुश्किल में
राहत मिलती है, इसके पास आकर
परिवार के खातिर यह
दिन रात लगी रहती है
सबकी खुशियों के खातिर यह
कभी खुद को भी भूल जाती है
मुश्किल आ जाए तो
माँ काली भी बन जाती है
बेटियों का सम्मान करो
है बिन इनके क्या?
जीवन का अर्थ कहो
आओ ना शपथ लें आज हम
करेंगे बालिकाओं के जीवन को
बचाने के लिए हर काज हम।
बेटी बचाओ,
बेटी पढ़ाओ।
रचयिता
दीपा कर्नाटक,
प्रभारी प्रधानाध्यापिका,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय छतौला,
विकास खण्ड-रामगढ़,
जनपद-नैनीताल,
उत्तराखण्ड।
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