माता सावित्रीबाई फुले
काँटों भरी सड़क पर,
चलने का गुर दिया है।
आँखों को खोलकर के,
पढ़ने का गुर दिया है।
कीचड़ भी फेंकी उनपर,
लांछन भी थे लगाए।
खुद भी वो लड़ गई थी,
लड़ने का गुर दिया है।
अबला थी जो अभी तक,
बढ़ने का गुर दिया है,
जंजीरों में थी जकड़ी,
खुलने का गुर दिया है।
जाकर उन्हें सिखाया,
जाकर उन्हें पढ़ाया।
मुरझाई सी कली को,
खिलने का गुर दिया है।
अब जो थी अंधेरा,
रोशन उसे किया है।
सावित्री बाई तुमने,
भारत को पुर किया है।
जय हिंद, जय भारत
रचयिता
आमिर फारूक,
एआरपी विज्ञान,
विकास खण्ड-उझानी,
जनपद-बदायूँ।
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