रोहित प्रताप सिंह: संघर्ष से सफलता की कहानी 01
🧑🏻🏫संघर्ष से सफ़लता की कहानी- 01👩🏻🎓
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1. प्रारम्भिक जीवनकाल-
मेरा जन्म हमीरपुर जनपद के सरीला तहसील के एक छोटे से कस्बे गोहान्ड में हुआ था। मैं परिवार में भाई बहन में सबसे बड़ा हूँ।
2. शैक्षणिक जीवनकाल-
मेरी प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा (कक्षा 1-5 तक) मेरे घर के बगल के एक स्कूल में हुई जिसका नाम था- #ब्रह्मानंद_शिक्षा_निकेतन (हमारे क्षेत्र मे स्वामी ब्रह्मानंद जी द्वारा स्थापित प्राथमिक से लेकर डिग्री कॉलेज तक अच्छे संस्थान है।) कक्षा 6 से 12 तक की शिक्षा गाँव के ही श्री गांधी इंटर कॉलेज से हुई।
मेरे घर में मेरे बड़े पापा जब भी आते थे तो बोलते थे कि अरे ये ढंग से नहीं पढ़ता, 2nd ही आता है। मेरे पापा मुझे समझाते थे कि बोर्ड परीक्षा में कोई पक्षपात नहीं हो पायेगा।
10th के बोर्ड के एक्ज़ाम हुए और 2006 में हुए बोर्ड में मेरे नम्बर 74% आए थे। इस बात की प्रासंगिकता आज के टीचिंग करिअर में भी है। मैं अपने क्लास औऱ स्कूल के बच्चों को पक्षपात से बचाता हूँ और बच्चों की वास्तविक क्षमता को निखारने पर ध्यान देता हूँ, ताकि बच्चे भावी जीवन की चुनौतियों से आत्मविश्वास के साथ सामना करें।
मैं बारहवीं के बाद B.tech करना चाहता था, परन्तु घर में आर्थिक समस्या की वज़ह से दाखिला नहीं हो पाया। जबकि मेरे साथ के सभी भाई बहनें Btech ही कर रहे थे। आई०आई०टी० के लिए सेल्फ स्टडी की और परीक्षा दिया। किन्तु सिलेक्शन नहीं हुआ। फिर स्नातक के लिए मेंने कुछ प्रवेश परीक्षाएं दी, जिसमें मुझे झाँसी का *बिपिन बिहारी कॉलेज* मिला। ये हमारी #बुंदेलखण्ड_विश्वविद्यालय का एक अच्छा, प्रतिष्ठित कॉलेज था। साथ में मैंने SCRA की भी तैयारी की ताकि बिना पैसे के B.tech. हो पाये। मैं गाँव का हिंदी माध्यम से पढ़ा लड़का था, आगे की तैयारी अंग्रेजी माध्यम में थी, फिर भी अपने आप को अंग्रेजी माध्यम की पुस्तकें पढ़ने के लिए अथाह मेहनत की। (मैं पूरे चैप्टर को पहले पूरा ट्रांसलेट करता था तब समझता था, फिर नोट्स बनाता था।) क्योंकि SCRA में पूरे भारत में 25 सीटें ही रहती थी। हम हिन्दी माध्यम वाले 1 वैकेन्सी में भी हिम्मत नहीं हारते।
इसके साथ मैंने एन०सी०सी० भी की। एन०सी०सी० के फिजिकल में मैं प्रतीक्षा सूची में था। (मैंने NCC के फिजिकल टेस्ट के लिए पहली बार 500 - 500 के 4 सेट Rope skipping की थी ताकि सबसे तेज़ दौड़ पाऊँ। लेकिन हो गया उल्टा ही, अब तो चला भी नहीं जा रहा था। मेरी इस बेवकूफ़ी का कारण था गाइडेंस की कमी।)
अन्ततः कॉलेज का कैम्प जाने के बाद मेरा सिलेक्शन हुआ। जिसमें बहुत सी चुनौतियों के बाद सीनियर अण्डर ऑफिसर की रैंक तक पहुँचा। यहाँ से मेरा सपना तकनीकि कोर में सेना में अधिकारी बनने का हुआ। मैंने CDS की परीक्षा दी, जिसे मैंने 2 बार क्वालीफाई भी किया और एक बार नौसेना के लिए SSB इंटरव्यू दिया। एक बार भारतीय थलसेना के लिए। आर्मी के इंटरव्यू में मुझे पता चला कि मुझे nock knee की समस्या है। इसे भी सही करने के लिए बहुत exercise, Running की।लेकिन डॉक्टर से मिलने पर पता चला कि ये स्थाई ही होता है बचपन से।
फ़िलहाल अब मुझे एक निर्णय लेना था कि डिफेन्स ऑफिसर बनने के सपने को छोडकर किसी और लाइन में जाने का। ( एक बात और थी मन में कि अपने सर्वश्रेष्ठ कार्यों के लिये राष्ट्रपति पुरस्कार या तो डिफेन्स में मिलता है या शिक्षण में।)
इसके बाद मैंने DIET से BTC की जो कि घर से 90 किलोमीटर दूर थी। जहाँ हम रूम लेकर रहते थे वहाँ से DIET जाने के लिए या तो पूरा पहाड़ घूम के जाओ (5 km) या फिर पहाड़ क्रॉस करके (2km) जाना होता था। फ़िलहाल हम पहाड़ पर चढ़कर ही जाते थे। BTC के समय हमारा 6 लोगों का एक ग्रुप था जिसका नाम स्माइल😊 ग्रुप रखा हमने। दिन भर DIET में ट्रेनिंग करते और शाम को सब अपनी अपनी फील्ड का नॉलेज़ शेयर करते(मिलकर पढ़ते।) हम सभी का पहली बार में ही TET, CTET (primary, junior level) QUALIFY हुआ था।
3. शिक्षक रूप का जीवनकाल :-
हमारे जिले में सीट नहीं होने की वजह से मेरी ज्वाइनिंग अमेठी जिले में हुई जो कि मेरे घर से 375 किमी० दूर था। वहाँ की भाषा, बच्चों की गाँव की बोली मुझे कुछ भी समझ नहीं आती थी, जब मेरा पहला दिन था मुझे मेरे प्रधान अध्यापक की कोई बात समझ नहीं आई बस किसी तरह ये समझ आया कि कल से स्कूल आना है। वहाँ के कुछ शब्द- कहाँ बाटे, विहान का करबे ( कल क्या करोगे), नहीं को हाँ अ आ, और भी कई शब्द।
फ़िलहाल धीरे-धीरे बच्चों से घुल मिल गया। उनसे वहाँ के शब्द सीखे, पढ़ाने में भी बहुत ध्यान देना पड़ता था(चुप चाप शब्द वहाँ एक गाली है)।
शुरुआत में कुछ दिन मैंने अपनी खड़ी बोली में पढ़ाया, फिर धीरे धीरे वहाँ की लोकल भाषा में अध्यापन करने लगा।
विद्यालय में उस समय प्राइमरी में हिंदी गणित और जूनियर में हिंदी, संस्कृत, थोड़ी सी गणित ही पढ़ाई जाती थी। 1से 8 में केवल 4 शिक्षक ही थे, सिग्नेचर करके भागने वाली प्रथा भी थी। कई बार विद्यालय में मैं अकेला ही सब बच्चों को देखता था। मैं पूरा दिन पहले प्राथमिक में पढ़ाता फिर जूनियर में। कुछ दिन पढ़ाने के बाद कुछ एक्स्ट्रा क्लास लेनी शुरू की। जिसमें पढ़ने के लिए बाहर के भी बच्चे (10th, 12th के) आते थे।
धीरे-धीरे स्टाफ बढ़ा हम 4 से अब 6 हो गए। किन्तु काम सिर्फ 3 ही करते थे। स्कूल की स्थिति थोड़ी सुधरी। हमने मिलकर और मेहनत की। मैंने बच्चों को खेलकूद में प्रतिभाग कराना शुरू किया। पहले हमे पता ही नहीं चलता था कि कब खेलकूद हैं। हमे खेलकूद वाले दिन विद्यालय के कामों में ही उलझा दिया जाता था। पहले शुरू के कुछ 2 वर्षो में खेलों का कोई अच्छा परिणाम नहीं आया। वर्ष 2021 के खेलों में हमारी प्राथमिक बालक कबड्डी टीम राज्य स्तर तक पहुँचीं। परन्तु कोविड के कारण राज्य स्तरीय खेलकूद हुए ही नहीं।
इस वर्ष 2022 के खेलों में भी हमारी प्राथमिक बालक, जूनियर बालक कबड्डी की टीमें (2 टीम, डिस्कस थ्रो में(1 बच्चा) भी राज्य स्तर तक पहुँचें हैं। उम्मीद है हमारे बच्चे स्टेट भी क्वालीफाई करेंगे।
वर्तमान जीवन काल :-
इस समय मैं अपने क्षेत्र में अच्छा कर पा रहा हूँ हमारे क्लास व विद्यालय के बच्चे खेलों में स्टेट लेवल तक, पढ़ाई में अव्वल, विभिन्न तरह की विभागीय गतिविधियों में सक्रियता से प्रतिभाग करते हैं। वर्तमान में मैं अपने विद्यालय में स्मार्ट कक्षा के माध्यम से बच्चों के सीखने को और भी रोचक बना रहा हूँ। कुछ वर्तमान की उपलब्धियां इस प्रकार से है-
एक शिक्षक के रूप में वर्ष 2022 मेरे लिए काफी शानदार रहा, बहुत सारी नई चुनौतियाँ, सीखने के नये-नये अवसर और कुछ नयी उपलब्धियां आने वाले वर्ष में भी उसी जोश, उत्साह और मेहनत से काम करने को प्रेरित करती रहेगी।
1. 2022 की शुरुआत 1 जनवरी के दिन *प्राथमिक शिक्षक संघ* द्वारा हमें वर्ष 2021 के खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए *🏅सम्मानित* करने के साथ हुई ।
2. राज्य अध्यापक पुरूस्कार के लिए प्रतिभाग करने का अवसर मिला, जिसमें हर level पर बहुत कुछ सीखा।
3. राष्ट्रपति पुरूस्कार के लिये भी अमेठी जनपद का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला।
4. #मिशन_शिक्षण_संवाद द्वारा अंतरराष्ट्रीय शिक्षक दिवस पर *"अनमोल रत्न अवार्ड "* से सम्मानित किया गया, ये मेरे लिए बहुत गौरव का पल रहा।
5.शिक्षक दिवस के अवसर पर ही *जिलाधिकारी* महोदय द्वारा #उत्कृष्ट_शिक्षक_पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
6.मेरे जन्मदिवस के अवसर पर #अंतर्राष्ट्रीय_टीचर_ओलिंपियाड का अच्छा रिजल्ट आया। विश्व के 45 देशों के अध्यापकों में अपनी भी पहचान बनाना काफी सुखद रहा।
7. #आईसीटी_अवार्ड के लिए राज्य स्तर के लिए चयनित होना काफी रोमांचक रहा।
8. पुनः 2022 के खेलों में भी हमारा पिछली बार से अच्छा प्रदर्शन रहा, जिसके लिए हमारी टीम को *BEO sir* द्वारा 🏅सम्मानित किया गया।
9. विद्यालय स्तर पर व व्यक्तिगत स्तर पर और भी कई सारी सुनहरी उपलब्धियां रहीं ( NMMS परीक्षा - 2 बच्चे ) जोकि हमारे स्टाफ की मेहनत आपसी समन्वय से सम्भव हो पाई।
पिछले वर्ष की तरह इस नए वर्ष में भी हम मिलकर और भी बेहतर तरीके से चीजें करने की कोशिश करेंगे ।
फेसबुक:
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भविष्य की कार्ययोजना :-
भविष्य में बच्चों के अधिगम स्तर को बढ़ाने के लिए और भी नए अभिनव प्रयोग करूँगा-
1.विद्यालय के मैदान को एक ओपेन साइंस लैब में बदलाव करना, ताकि बच्चे खेल-खेल मे सीखे।
2. प्रोजेक्टर के माध्यम से वीडियो कॉल से बच्चों को अलग-अलग जगह के बच्चों से जोड़ना (एक्सपोज़र देना), दीक्षा ऐप, यूट्यूब का और भी ज्यादा प्रयोग आदि।
3. अलग अलग विषयों के ओलम्पियाड में प्रतिभाग कराना, क्योंकि मैंने भी अंतरराष्ट्रीय ओलम्पियाड में स्वयं प्रतिभाग किया है।
4. करके सीखना के द्वारा बच्चों की पढ़ाई कराना।
मिशन शिक्षण संवाद के प्रति दृष्टिकोण:-
मैं जब से मिशन से जुड़ा हूँ, बहुत तरह की नयी विधाएँ, नए नए नवाचार, रोज आने वाली बेस्ट शिक्षण सामाग्री आदि कई चीजें सीख भी रहा हूँ और प्रयोग भी कर रहा हूँ। नए नए लोगों से जुड़ने का अवसर (जैसे कि संयोगिता मैंम ),
जितने भी लोग मिशन से जुड़े हैं बहुत मेहनत करते है, रोज सामग्री तैयार करना फिर आगे सुबह फॉरवर्ड करना ताकि प्रत्येक बच्चे तक पढ़ाई का एक अच्छा स्रोत पहुँच पाए। जिससे हमारे बच्चो का बहुआयामी बौद्धिक विकास हो पाए।
अन्त में आदरणीय विमल सर की जीवटता, परिश्रम हम सभी लोगों में एक नयी ऊर्जा का संचार करती है। ( जब भी हमको लगता है कि कितना काम है, क्योंकि महीने के 10 से ज्यादा दिन ऐसे होते हैं जब हम विद्यालय से शाम 7 बजे आते हैं ताकि बच्चे विभिन्न परीक्षाओं, एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज में सर्वश्रेष्ट प्रदर्शन कर पाएँ)
अन्त में कुछ पंक्तियाँ कहना चाहूँगा-
"जीवन की काली रातें हों,
आशा सरिता सूख चली हो,
सरस सरोवर मानस का जब
मृगतृष्णा की मरुस्थली हो ।
अंतिम सांसे लेती हो मेरी मिट्टी की ये काया,
पर क्या मेरे ग्यान दीप को कोई कभी बुझाने पाया?
जग के प्रलय तिमिर में मेरे अंतरदीप जला करते हैं,
अभिशापो में वरदानो के स्वर्णिम फूल खिला करते हैं।"
नाम- #रोहित_प्रताप_सिंह
पद- सहायक अध्यापक, संकुल शिक्षक
विद्यालय- उच्च प्राथमिक विद्यालय नेविढय (1-8)
ब्लॉक- भादर
जिला- #अमेठी
उत्तर प्रदेश
संकलन :-
टीम मिशन शिक्षण संवाद
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