मैं और मेरा भैया
दिन भर खूब करें शैतानी,
बहिन भाई हम बड़े धुरंधर।
एक दिन हमने पकड़ी चिड़िया,
बंद करी पिंजड़े के अंदर।
खाना-पानी दिया सभी कुछ,
चिड़िया तकती द्वार निंरतर।
बाहर से जब मम्मी आईं,
हो गयीं गुस्सा देखकर मंजर।
खोलो पिंजड़ा छोड़ो चिड़िया,
तुम दोनों शैतानी बंदर।
कैद किसी को भाती है,
हो पिंजड़ा कितना भी सुन्दर।
पाकर अपनी आजादी,
विजयी चिड़िया बनी सिकंदर।
माफ़ करो हमको मम्मी जी,
अब न करेंगे कोई बवंडर।
रचयिता
राजबाला धैर्य,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बिरिया नारायणपुर,
विकास खण्ड-क्यारा,
जनपद-बरेली।
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