गणपति बप्पा मोरया

प्रथम  पूज्य  करिवर  बदन, गौरी-पूत  गणेश।

मेरे   उर   में   ब्राजिये,  सादर   उमा   महेश।। 


नहीं  चाहिए  मान   पद,  नहीं   चाहिए   ताज।

सहज  ध्यान में  आइये, श्री गणपति महराज।। 


आप  जहाँ  शुचिता  वहाँ, शुभदा  मंगल  वास।

गणपति  से  भय  मानते,  दुविधा  बाधा  त्रास।। 


अभिलाषा  पूरण  करो,  गणपति   गौरीकान्त।

मुक्ति   मिले  आतंक से,  होंय  दिशाएँ  शान्त।। 


आते ही  कर में  कलम, सृजित  होय  साहित्य।

जैसे  कलियाँ चटकतीं, छुअत किरण-आदित्य।। 


कलाकार  लेखक  सृजक, का  ऐसा  अनुमान।

गौरीसुत  तव  कृपा  से,  मिली  उन्हें   पहचान।।


रचयिता

हरीराम गुप्त "निरपेक्ष"
सेवानिवृत्त शिक्षक,
जनपद-हमीरपुर।

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