शहीद दिवस
स्वतन्त्रता के मतवाले थे,
बापू हमको बहुत प्यारे थे।
सत्य, अहिंसा से लड़े वो,
आजादी को सब कुछ हारे थे।।
धर्म, राजनीति से परे थे वो,
अंग्रेजी हुकूमत को धिक्कारे थे।
असहयोग, सविनय अवज्ञा अपनाकर,
हर समस्या को, शान्ति से सुधारे थे।।
'बुरा न सुनो, न कहो, न देखो' बोले,
आत्मबल धैर्य से खुद को सँवारे थे।
सादा जीवन उच्च विचार अपनाकर
हिन्दुस्तान के दर्द को, पुत्र बन तारे थे।।
30 जनवरी 1948 की काली शाम,
संध्याकालीन प्रार्थना का था काम।
गोडसे ने नतमस्तक का किया दिखावा,
गोली मार, किया बाबू का काम तमाम।।
आखिरी शब्द था निकला 'हे राम'
दुनिया में मच गया था कोहराम।
साबरमती संत हुए, चिरनिद्रा में लीन,
'शहीद दिवस' का मिला, दिन को नाम।।
रचयिता
वन्दना यादव "गज़ल"
सहायक अध्यापक,
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक,
विकास खण्ड-डोभी,
जनपद-जौनपुर।
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