प्रथम शैलपुत्री नमन
नौ रुपों में पहला शैलपुत्री स्वरूप,
प्रथम दुर्गा का यही है रूप।
पर्वतराज हिमालय की पुत्री थीं ये,
शैलपुत्री नाम पाईं शक्ति का प्रतिरूप।।
योग साधना का प्रारंभ इनसे होता,
भक्त मन को मूलाधार चक्र में स्थित करता।
वृषभ स्थिता मैया त्रिशूल, कमल धारिणी,
पूर्व जन्म इनका सती नाम है बताता।।
शारदीय नवरात्र आरंभ होने पर है पूजा,
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा कलश स्थापना काम दूजा।
सुख समृद्धि का वास कराती हैं देवी,
आराधना से मनोवांछित फल हेतु पूजा।।
मंत्र जाप से मैया भक्तों पर प्रसन्न होती है,
कामनाएँ सभी शीघ्र ही पूर्ण मैया करती।
प्रथम नवदुर्गा का करो सब स्वागत,
शंकर प्रिया, उमा, पार्वती नाम से जानी जाती।।
चट्टान की तरह मजबूत इरादों वाली माँ,
भक्तों की पुकार पर दौड़ी आती माँ।
कष्ट में कभी जो माँ हमें पाएगी,
बिन बुलाए ही दौड़ी चली आएगी माँ।।
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