महिषासुर मर्दिनी माता को नमन

नव दुर्गा के छठवें दिन स्मरण करें कात्यायनी माता,

ऋषि कात्यायन के घर जन्मीं, कात्यायनी कहा जाता।

ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी मानी गईं,

कृष्ण प्राप्ति के लिए गोपियों द्वारा पूजा जाता।।


पार्वती का दूसरा नाम अमरकोश में ये बताते,

उमा, गौरी, काली, हेमावती नाम पुकारे जाते।

स्कंद पुराण के अनुसार क्रोध से उत्पन्न हुई थी,

सिंहारुढ़ महिषासुर का वध इनके द्वारा बताते।।


साधक का मन अब आज्ञा चक्र में स्थित होता,

ऐसा व्यक्ति माँ के चरणों में सर्वस्व निवेदित करता।

परिपूर्ण आत्मदान से माँ के दर्शन प्राप्त होते,

धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का पथ साधक है पाता।।


स्वरूप माँ का है अत्यधिक चमकीला भास्वर,

चार भुजाएँ माँ की और वाहन सिंह है मुखर।

दाहिना हाथ अभय मुद्रा में, दूजा वरमुद्रा में,

तलवार, कमल पुष्प की शोभा है प्रखर।।


सरल और स्पष्ट है मेरी कात्यायनी माँ की पूजा,

अद्भुत शक्ति का संचार रहे काम दूजा।

दुश्मनों का संहार करने में सक्षम ये बनाएँ,

रोग, शोक, संताप नष्ट करें, हो माता की पूजा।।


रचयिता
नम्रता श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।

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