मोक्षदायी स्कंदमाता

मोक्षदायी स्कंद माता का है पाँचवाँ दिन,

सुखदायी रहे मैया का प्रथम दर्शन।

भक्तों की इच्छाओं की पूर्ति करें मैया,

शुभ मानते हैं स्कंदमाता का आगमन।।


शुभ्र वर्ण भैया की चार भुजाएँ सुशोभित,

कमल, वर मुद्रा, कमलासन है सुशोभित।

पद्मासना भी भक्त कहते हैं प्यार से,

बलशाली सिंह के वाहन पर मैया विराजित।।


देवासुर संग्राम के सेनापति स्कंद की है माता,

इसीलिए ये स्वरूप स्कंदमाता कहलाता।

पाँचवें दिन शास्त्रों में पुष्कल महत्व का वर्णन,

साधक विष्णु चेतन स्वरूप की ओर अग्रसर हो जाता।।


सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं ये माता,

उपासक अलौकिक तेज, कांति से संपन्न होता।

एकाग्र भाव से, पवित्र मन से माँ की शरण में जाना,

भवसागर पार करना फिर सुलभ हो जाता।।


सर्वत्र विराजमान स्कंदमाता तुम्हें प्रणाम,

मेरे पापों से मुक्ति को करती हूँ आवाहन।

विशुद्ध चक्र में अवस्थित हो मन मेरा,

मैं अज्ञानी चाहूँ हर समस्या का समाधान।।


रचयिता
नम्रता श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।

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