सूरज दादा
रोज -रोज सूरज दादा।
सुबह सुबह आ जाते हो।
क्या तुम थकते नहीं कभी।
न तुम कभी अलसाते हो।
कभी तुम्हारी नहीं होती छुट्टी।
क्या संडे नहीं मनाते हो।
मम्मी क्या तुम्हारी तुमको।
जल्दी सुबह उठा देतीं।
क्या तुम्हारे पापा तुमको।
रोज -रोज धमकाते हैं।
क्या तुम्हारी दीदी तुमसे।
होम वर्क करवाती हैं।
क्या तुम्हारे टीचर जी भी।
रोज ही क्लास लगाते हैं।
मेरी बात सुनो सूरज दादा।
एक दिन तुम भी छुट्टी कर लो।
बिस्तर में छुप कर सोते रहना।
मैं भी सो लूँगा जी भरकर।
एक रोज सबेरे मत आना।
आसमान में तारों के संग।
पारियों के संग में रहना।
रचनाकार
दीपमाला शाक्य दीप,
शिक्षामित्र,
प्राथमिक विद्यालय कल्यानपुर,
विकास खण्ड-छिबरामऊ,
जनपद-कन्नौज।
बहुत सुन्दर 👌👌
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