आओ रे मेघा

आओ रे मेघा आओ,
जल भरि लाओ।
सागर से भर गागर अपनी,
जल बूँद-बूँद बरसाओ।
श्वेत श्याम है रंग सजीला,
अम्बर पट है नीला-नीला।
दूर-दूर तक खेल खेलकर,
गरज-गरज कर नभ पर।
काली-काली घटा सुहानी,
वही छटा बन छा जाओ।
आओ रे मेघा आओ- -

जीव जगत में आशा जागे,
तपन अगन सी अब ये भागे।
छन-छन से टपक-टपक कर,
तुम धार बहा दो आगे-आगे।
ताल भरें हो धारा कल-कल,
अविरल नदी बहाओ।
आओ रे मेघा आओ।

आषाढ़़ मास की पहली वर्षा,
बिन देखे जन मन तरसा।
व्याकुल मन के मीत हमारे,
अब देख तुम्हें मन हरषा।
धरती ऊपर जल बन बरसो,
भू जल प्रचुर बढ़ाओ।
आओ रे मेघा आओ।

धरती पर ये खेत हमारे,
तृषित हुए हैं जल बिन सारे।
तिनका तिनका सूखा सारा,
आओ बनकर नये सहारे।
भूमिपुत्र भी राह निहारे,
उसकी सुनते जाओ।
आओ रे मेघा आओ।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।


Comments

Post a Comment

Total Pageviews