जल और जीवन

गिरते जलस्तर को तू,
अगर समझ न पाएगा।
आने वाले कल में तू,
बहुत बार पछताएगा।

ठहर जरा, तू सुन ले मेरी,
अभी नहीं कुछ देर हुई।
मत कर जल को यों ही जाया,
प्यासा, व्याकुल जाएगा।

धन संपदा होगी खारिज,
मालमता सब जाएगा।
अगर किया न जल का संचय,
धन, धरा रह जाएगा।

एक प्रण अच्छे से कर ले,
बात मेरी तू मन में रख ले।
सौ पेड़ तू धरा में धर ले,
जीवन को तू सुंदर कर ले,
जीवन को तू सुंदर कर ले।

रचयिता
डॉ0 ललित कुमार,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय खिजरपुर जोशीया, 
विकास खण्ड-लोधा, 
जनपद-अलीगढ़।

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