उठो खोलो आँख

यूँ शलभ से मत जलो तुम
 दाह बन कर के दिखाओ।
मत घृणा की फसल काटो
प्यार के कुछ गुल खिलाओ।
दीप सा जीवन जियो तुम
खुद जलो पर तम मिटाओ।
 पथ नहीं है तो हुआ क्या
राह अपनी खुद बनाओ।
कुछ करो ऐसा कि अपने
आप बन जाए कहानी।
उठो खोलो आँख
मेरे देश की अभिनव जवानी।

एक झंझावात ऐसा
 चाहिए जो युग बदल दे।
एक आंधी चाहिए इस
देश का जो रुख बदल दे।
एक पत्थर आ लगे जो
 चेतना को फिर जगा दे।
अस्मिता के शांत सर में
तीव्रतम हलचल मचा दे।
बन सकी अब तक नहीं जो
तुम बनाओ वो कहानी।
उठो खोलो…………..।

सिंधु सा गर्जन निरंतर
दे रहा परिचय तुम्हारा।
है तुम्हारे पास हिमगिरि
सा अटल निश्चय तुम्हारा।
देश को अब चाहिए बस
सबल हाथों का सहारा।
जोहता है बाट कब से
समय का प्रहरी तुम्हारा।
लो नया संकल्प जागो
फिर लिखो नूतन कहानी।
उठो खोलो………….।

डगमगाने से लगे हैं
क्यों अभी से पग तुम्हारे।
क्यों भला होने लगे हैं
शिथिल अवयव आज सारे।
किसलिए विश्वास अपने
आप पर तुमको नहीं है।
किसलिए पहिचान अपने
आप की तुमको नहीं है।
वक्त से पहले न होने
दो खतम अपनी कहानी।
उठो खोलो………….।

रचयिता
प्रार्थना मिश्रा,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय नगला हरिकेशी,
विकास खण्ड-खंदौली,
जनपद-आगरा।

Comments

  1. सुन्दरतम्, आवाहन गीत।

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