अभिभावक की व्यथा

आज एक निजी विद्यालय के पैरेंट्स टीचर मीटिंग में मुझे बुलाया गया।
आपकी बच्ची को कुछ नहीं आता कह कर धमकाया गया।।

क्लास टीचर मैम थोड़ा कड़क स्वर में बोली।
मेरे पैर के नीचे से जमीन खिसका लगी जैसे गोली।।

एडमिशन के वक्त ही आपसे कहा गया था।
बच्चे के साथ आपका भी टेस्ट लिया गया था।।

तो फिर आप बच्चे को लर्न क्यों नही करवाते।
नहीं पढ़ा पाते तो ट्यूशन क्यों नहीं लगवाते।।

यदि आपने अपने में समय से सुधार नही किया।
बच्चे को समय से लर्न नहीं करा दिया।

तो हाफ इयरली एग्जाम के बाद नाम काट दिया जाएगा।
नहीं तो शहर के नामी स्कूल का रेपोटेशन खराब हो जाएगा।।

मैं भी अकड़कर बोला फीस देता हूँ लर्न कराना है आपकी जिम्मेदारी।
नही तो बात ऊपर तक पहुँचाऊँगा इतनी पहुँच है हमारी।।

ऊपर कहाँ तक जाएँगे डी एम का बच्चा भी यहीं है पढ़ता।
उनको भी समय निकालकर लर्न कराना पडता।।

ऊँची बिल्डिंग, झूला, स्विमिंग पूल बनवाने की है हमारी जिम्मेदारी।
आप भी समय से समझ लो इसी में है समझदारी।।

रचयिता
ब्रजेश कुमार द्विवेदी,
प्रधानध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय हृदयनगर,
जनपद-बलरामपुर।

Comments

  1. सर!निजी विद्यालय से बिटिया का नाम कटवाइये।परिषदीय विद्यालय में नाम उसका लिखवाइये।
    हम देंगे उसे गुणवत्ता परक शिक्षा,
    निजी विद्यालय को मंगवा देंगे भिक्षा।
    निजी विद्यालय तो अभिभावकों को खूब लूटते हैं,
    समय समय पर हमारे बच्चों को भी खूब कूटते हैं।
    अब हमारे यहाँ भी अंग्रेजी में होती है पढ़ाई,
    निजी स्कूलों से भी अच्छी होती है यहाँ पढ़ाई।
    जब अच्छे और योग्य अध्यापक तन मन से हैं पढ़ाते,
    इन्हें छोड़कर फिर हम क्यों निजी स्कूलों में हैं जाते?


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