गुरु महिमा

पिता  प्यार  से अधिक है , गुरुवर  जी  की डाँट
वहि    डाँट   मा   छुपा   है  ,  प्रेमहुं  बारह बाट

गुरु  महिमा  असीम  है , नहिं लिख पाया संसार
ज्ञानी ध्यानी जो दिख रहे , उनके सम्मुख लाचार

निरालम्ब  गुरु  ज्ञान  के , भया  न   कोउ महान
जिनकी पुनीत  महिमा को , जानै सकल जहान

गुरुवर  उन्नति  आधार  हैं , ज्ञानै  उनकी पहचान
बिन  भेद  शिक्षा  दे  रहे , कहते  'निडर'  सुजान

वाणी जिनकी कर्कश सदा , पर उसमें नेह अपार
सबके  उन्नति  हेतु मा ,  नित बनती  जो सहकार

महि से भारी ऊँचा अम्बर से जलधिउ से है अतल
उसकी  सुरभित  वाणी में , गुरु का है मान अटल

गुरू  जीवन  की  आन  है , गुरु  जीवन  की शान
बिन   गुरु   मिलति   है  ,  जगह  जगह  अपमान

गुरु   मजहब   न  देखिए  ,  जान   लीजिए  ज्ञान
गुरु   जाति   न   देखिए  ,  चरित्र   लीजिए  छान

भला  अपन  जो  तुम  चहौ , लीजै  गुरु अपनाय
गुरु  गुणन  निधि  होति है , 'निडर'  रहे  बतलाय
       
गुरु  से भेद  न  कीजिए , केतनउ  बड़े  होइ जाव
राह  दिखायी  गुरु  ने  तुम्हें  , रक्खो  आदर  भाव
                   
रचनाकार
देवेन्द्र कश्यप 'निडर',
साहित्यकार व सामाजिक चिंतक,
सहायक अध्यापक, 
प्राथमिक विद्यालय हरिहरपुर,
विकास क्षेत्र-मछरेहटा, 
जिला-सीतापुर।

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