प्रकृति संरक्षण

     जल, जंगल और जमीन,
अधूरी है प्रकृति इनके बिन।

जल, मिट्टी, खनिज व भोजन,
देती धरा, जिस पर हैं सब निर्भर।
विटप, जीव-जंतु व  पवन,
प्रकृति से मिलती है निर्झर है।

प्रकृति पूर्ण करती है जरूरत,
पर पूर्ण ना कर सकती है लालच।

बदलती जीवनशैली व रहन-सहन
मानव का बढ़ता शहरीकरण।
वन क्षेत्रों का हो रहा है घटन,
हैं सीमित प्रकृति के संसाधन।

संतुलितावरण जीवन का आधार,
जीव- जंतु हो जाएँ, ना लाचार।

ना दिखता, पादप 'बेशर्म/बेहया'!
कहीं भी उगने की थी श्रेष्ठ प्रचुरता।
इस पौधे में भी आ गई है हया!
पोखर-तालाब में हुई जो न्यूनता।

जलवायु असंतुलन बढ़ता विनाश,
अवैध शिकार व रुकता विकास।

गलता ग्लेशियर, बढ़ता  उफान,
सुनामी, आँधी, बाढ़ व तूफान।
सूखा, जलावृष्टि, मौसम परिवर्तन,
कारण मानव का आधुनिकीकरण

प्रकृति संरक्षण का करें संकल्प,
प्रकृति का है ना कोई विकल्प।

संसाधनों की करें बचत,
रिसाइकल का हो प्रबंधन।
बायोडिग्रेडेबल की हो खपत,
पर्यावरण ऊर्जा का करें संचयन।

आओ! बचाएँ हम सब नीर,
समझें सूखे के कारण की पीर।

4 R  का  करें  चयन,
कम, पुनरावृत्ति व उपयोग पुनः।
सौर ऊर्जा व जैविक उत्पादन,
सार्थक हो, सब का संगठन।

28 जुलाई का दिन है आया,
विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस लाया।

सबका  है  अब  यही  प्रण,
ना हो धुआँ,ना हो प्रदूषण।
प्रकृति का संचय संरक्षण हो दृढ़,
चुका ना सकेंगें! प्रकृति हम तेरा ऋण।
 
रचयिता
प्रियंशा मौर्य,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय चिलार,
विकास क्षेत्र-देवकली,
जनपद-गाजीपुर।

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