२५९~ अनिता कुशवाहा प्रधानाध्यापक प्राथमिक विद्यालय खगईजोत द्वितीय, बलरामपुर

🏅अनमोल रत्न🏅


कौन कहता कि जल रुकता नहीं छलनी में बर्फ जमने तक आस लगाए रखिए परिश्रम संघर्ष और धैर्य का सिलसिला बनाए रखिए। मेरी प्रथम नियुक्ति 13/2/2009 प्राथमिक विद्यालय सिंगपुर, शिक्षा क्षेत्र शिवपुरा, जनपद बलरामपुर में हुई। जब मैं विद्यालय गई तो स्कूल में कुछ बच्चे प्रधानाध्यापक और शिक्षामित्र थे। बच्चों से मिलकर बहुत खुशी हुई क्योंकि हमारा बचपन का सपना साकार हो रहा था। मैं एक अध्यापक बनना चाहती थी, बच्चों से खूब बातें किए सब बच्चों ने पूछा मैडम जी आप हम लोगों को पढ़ाएँगी। आप दूसरे स्कूल में तो नहीं जाएँगी। यहाँ रास्ते सही नहीं है जो आता है वह चला जाता है। हमने कहा नहीं हम सब दोस्त बनकर रहेंगे और खूब खेलेंगे और खूब पढ़ेंगे। लेकिन सच तो यही था यहाँ पहुँचना ही सबसे बड़ी चुनौती थी। स्कूल में बच्चों के साथ खेल और गतिविधि कहानी नवाचार के माध्यम से विषय वस्तु को सिखाना शुरू किया। बच्चों को सीखने में खूब रुचि आने लगी और गाँव की बच्चों में चर्चा शुरू की कि मैडम स्कूल में खेल-खेल में पढ़ाती हैं। जिन बच्चों का नाम स्कूल में लिखा था और स्कूल नहीं आते थे। वह भी स्कूल आने लगे स्कूल में बच्चों की उपस्थिति बहुत अच्छी हो गयी। सभी अध्यापक टीम भावना से बच्चों के साथ काम करना शुरू किए। बच्चों का बौद्धिक, सामाजिक ज्ञान काफी अच्छा होने लगा, सभी बच्चों के अभिभावक बहुत खुश थे। कुछ समय बाद मेरा समायोजन प्राथमिक विद्यालय घूघूरपुर शिक्षा क्षेत्र-बलरामपुर, जनपद बलरामपुर में हो गया। जब मैं स्कूल गयी तो 2 शिक्षामित्र 30 से 40 बच्चे उपस्थित थे। विद्यालय का परिवेश देखकर घबरायी लेकिन हौंसला बुलंद रखा। विद्यालय की भौतिक परिवेश में सुधार कराना शुरू किए, बैठने के लिए कुर्सी-मेज बहुत सारे गमले। कक्षा कक्ष को सुसज्जित करना, बच्चों के सहयोग से पेड़-पौधे लगाना, विद्यालय की रंगाई-पुताई, चित्रकारी इत्यादि करायी। अब बात आयी बच्चों को स्कूल में लाने की। कुछ बच्चे नामांकित तो थे लेकिन स्कूल नहीं आते थे गाँव के कुछ पढ़े-लिखे और समझदार लोगों को बुलाकर बात की तो पता चला कि अभिभावक काम पर जाते हैं और बच्चे घर को देखते हैं जो बच्चे स्कूल में थे उनके माध्यम से उन बच्चों को बुलाया। सभी बच्चों को एक जगह बैठाकर हम लोगों ने बात करना शुरू किया।
1- बाल अधिकारों के बारे में बताया कि अपना अधिकार जानें, पढ़ाई के महत्व को समझें। सरकार आप लोगों को इतना सभी सुविधाएँ निशुल्क दे रही हैं कि आप लोग भविष्य में अच्छे नागरिक बनें। 
2- बालिकाओं की उपस्थिति कम थी क्योंकि वही घर के काम करती थीं, हमने कहा कि थोड़ी देर से ही सही लेकिन स्कूल अवश्य आयें।
3- बच्चों को कहानी, कविता, नाटक के माध्यम से विषय वस्तुओं को बताना शुरू किया।
4- बच्चों में संस्कार की बातें बताना शुरू किया, बच्चे घर से माता-पिता और बड़ों का पैर छूकर साफ-सफाई से विद्यालय आने लगे। 
5- महीने में 1 दिन माता-पिता की मीटिंग करना शुरू किया।
6- राष्ट्रीय पर्व को धूमधाम से मनाना शुरू किया। 
7- रोज समय से आने वाले बच्चों के लिए प्रार्थना सभा में ताली बजवाना जन्मदिन मनाना, उनको प्रोत्साहित करना शुरू किया।
8- बच्चों को रोज गृहकार्य देना और नियम से देखना काम ना होने पर कारण पूछना। 
बच्चों में परिवर्तन देखकर अभिभावकों में नामांकन की होड़ मच गई लोग प्राइवेट से नाम कटवाकर हमारे स्कूल में लिखाने लगे सत्र 2011 और 2012 में 230 बच्चों का नामांकन हुआ।
लेकिन दिनांक 6 अगस्त 2013 को मेरा प्रमोशन हो गया और मैं प्राथमिक विद्यालय खगईजोत द्वितीय, शिक्षा क्षेत्र-बलरामपुर, जनपद बलरामपुर में प्रधानाध्यापक के पद पर कार्यरत हो गयी। यह स्कूल शहर से नजदीक था यहाँ प्राइवेट स्कूलों का बोलबाला था। यहाँ 2 शिक्षामित्र और कुछ बच्चे थे। सबसे बड़ी चुनौती थी प्राइवेट से बहुत अच्छा करना, सत्र की शुरुआत ही थी। उस समय विद्यालय में 105 बच्चे नामांकित थे. उनके लिए निम्न कार्य किए-
1- टाई-बेल्ट, आईकार्ड, डायरी आदि की व्यवस्था करना।
2-सामान्य ज्ञान के बारे में जानकारी देना।
3- बालसभा कराना जिसमें कविता, कहानी, नाटक, मुख्य समाचार, आदर्श वाक्य आदि कराना। 
4-विद्यालय में माइक सिस्टम से पीटी, प्रार्थना और अन्य कार्यक्रम कराना। 
5-वृहद रूप से पुस्तकालय की व्यवस्था की गयी।
6-बच्चों के लिए 3 सीट का झूला लगवाया गया।
7- विद्यालय का सुंदरीकरण किया गया स्कूल को प्रिंट रिच कराया गया। 

बच्चों के शिक्षण कार्य में नवाचार को प्राथमिकता दी जाने लगी। गाँव के लोगों ने अपने बच्चों का नामांकन स्कूल में कराना शुरू किया। सत्र 2013 और 2014 में 217 बच्चों का नामांकन हुआ लेकिन दोनों शिक्षामित्रों का समायोजन हो गया 217 बच्चे और मैं अकेली अध्यापिका। हमने सोचा कि अब गुणवत्ता कैसे आएगी, हमने विद्यालय प्रबंध समिति की बैठक बुलाई और उसमें अपनी समस्या रखी। उसमें बहुत सारे लोग पढ़े-लिखे थे उन लोगों ने बच्चों को एक-एक घंटा पढ़ाने का आश्वासन दिया और हमने भी हर क्लास में 2 मॉनीटर चुने जो बच्चे समझदार थे। मैं क्लास वर्क देने के बाद उन बच्चों से कहती थी आप लोग देखो कौन कर रहा है, कौन नहीं। इस तरह से बहुत मेहनत की। एक दिन श्रीमान जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी महोदय मेरे विद्यालय आये और बच्चों से जितना प्रश्न पूछा बच्चों ने सब सही-सही जवाब दिया। उन्होंने विद्यालय से खुश होकर एक और 3 सीट का झूला अपनी तरफ से बच्चों के लिए दिया। 14 नवंबर 2014 को निहारिका सिंह सहायक अध्यापक मेरे विद्यालय में आयीं। हम दोनों लोग मिलकर अगले दिन की योजना बनाते थे और उस पर कार्य करते थे। बच्चों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता देखकर अभिभावकों में विश्वास बढ़ने लगा सत्र 2015 और 16 में 285 बच्चों का नामांकन हुआ। 5 सितंबर 2015 को श्रीमान जिला अधिकारी महोदय द्वारा आदर्श शिक्षक का पुरस्कार मिला बहुत खुशी हुई क्योंकि परिश्रम का फल मिला 2 जुलाई 2016 को 3 सहायक अध्यापक विद्यालय में आए प्रज्ञा गोस्वामी, सौम्या सिंह, यासमीन परवीन। हम लोगों ने नये-नये नवाचार के माध्यम से बच्चों को सिखाना शुरू किए। हम लोगों की मेहनत देखकर श्रीमान जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी श्रीमान जय सिंह द्वारा उत्कृष्ट विद्यालय के रूप में मेरे विद्यालय का चुनाव किया गया है और हमारे विद्यालय को 5 सितंबर 2016 को मुख्यमंत्री माननीय अखिलेश यादव द्वारा उत्कृष्ट विद्यालय का पुरस्कार प्राप्त हुआ। हम लोगों में और ऊर्जा आ गयी। हम लोग विद्यालय को और बेहतर करने का प्रयास शुरू कर दिये। बच्चों की सुविधा के लिए वाटर सप्लाई कराया गया, सुरक्षा और सुसज्जित शौचालय बच्चों के लिए फर्नीचर की व्यवस्था की गयी। विद्यालय के स्मार्ट क्लास के लिए श्रीमान जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी श्री रमेश यादव द्वारा 28,000 रुपए का प्रोजेक्टर स्कूल को प्रदान किया। अब स्कूल में स्मार्ट क्लास और कंप्यूटर की व्यवस्था हो गयी। सत्र 2017 और 18 में 295 बच्चों का नामांकन विद्यालय में हुआ। अब गाँव के बच्चे प्राइवेट में ना जाकर हमारे यहाँ आने लगे। दिनांक 31 मार्च 2017 को श्रीमान जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी महोदय द्वारा उत्कृष्ट कार्य के लिए पुरस्कृत किया गया। हम लोग टीम भावना और नवाचार के माध्यम से खूब खेलो, खूब सीखो आदि को प्राथमिकता दिए। बच्चों में तार्किक शक्ति का विकास बहुत तेजी से होने लगा, केयर इंडिया द्वारा 24 जनवरी 2018 को उत्कृष्ट विद्यालय पुरस्कार प्रदान किया गया। अब हमारे विद्यालय में नो एडमिशन का बोर्ड लगाना पड़ता है क्योंकि स्कूल में कक्षा कक्ष की कमी है।







धन्यवाद
अनिता कुशवाहा प्रधानाध्यापक प्राथमिक विद्यालय खगईजोत द्वितीय, बलरामपुर

संकलन: ब्रजेश कुमार द्विवेदी
मिशन शिक्षण संवाद बलरामपुर

12-09-2018

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