धूल धूसरित फूल हैं

धूल धूसरित फूल हैं
विधाता की भूल हैं
ये भी बन सकते थे
किसी बाग़ के फूल कली
लेकिन इनकी किस्मत में
सड़कें और तंग गली
ढाबे, दुकान, होटल इनके
बस्ते और स्कूल हैं।
धूल धूसरित फूल हैं।
झिलमिल टूटे तारे हैं
फिर भी नहीं ये हारे हैं
अपने निर्बल माँ-बाप के
ये कमज़ोर सहारे हैं
छोटे-छोटे हाथों से
बड़े-बड़े काम करें
आराम नहीं जीवन में
काम ही उसूल हैं।
धूल धूसरित फूल हैं।
कुछ इनके भी सपने होंगें
इनके भी कुछ अपने होंगे
इनकी भी कुछ चाहत होगी
कैसे इनको राहत होगी
कड़ी धूप में पाँव जले
जीवन इनको खूब छले
हाथों में पुष्पों की जगह
चुभे जा रहे शूल हैं।
धूल धूसरित फूल हैं।

रचयिता
कौसर जहाँ,
सहायक अध्यापक, 
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बड़गहन,
विकास क्षेत्र-पिपरौली,
जनपद-गोरखपुर।

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