आसुरी वृत्तियों का दहन करें
"विजयदशमी पर विशेष"
'लोक रावणो रावणः' अर्थात् संसार को रुलाने में समर्थ रावण यद्यपि प्रतिवर्ष भगवान श्रीराम के द्वारा जलाया जाता है किंतु वास्तव में यह राघव-दशानन के बीच चलने वाला युद्ध ही नहीं है वरन् अन्याय से न्याय, असत्य से सत्य एवं अधर्म से धर्म के संघर्ष का अनवरत शंखनाद है। आज भी समाज की चुनौतियाँ चाहे वह आतंकवाद हो, जातिवाद हो, सम्प्रदाय हो अथवा वर्गवाद हो या उग्रवाद हो रावण के दस शीशों की तरह बार-बार कटते हुए भी अपने नये रुप में पुनः सजीव हो उठते हैं।
दहेज का दानव, कन्या भ्रूण हत्या, स्त्री लज्जा पर कुठाराघात जैसी स्थितियाँ हमें एक बार फिर 'रावण राज्य ' का साक्षात् दर्शन करा रही है। तब के राम अपने प्राणों पर खेलकर दशानन की ओर से आयी हुई चुनौतियों का साहसपूर्ण सामना कर सके थे किंतु आज हमारा शासन तंत्र, हमारी युवा शक्ति, हमारे उत्तरदायी प्रतिनिधि सब कुभंकरणी निद्रा में सोये हुए हैं।
आज हम भले ही राजनैतिक रुप से स्वतंत्र हो गए हैं किंतु मानसिक रूप से अब भी पराधीन दिखाई पड़ते हैं।
हमारा चिंतन नितान्त भौतिक वादी, स्वार्थप्रधान और अराजक हो गया है।
इसका सबसे बड़ कारण है 'कुर्सी मोह'।
"हीरे-मोती जड़ी हो गयीं कुर्सियाँ,
कटघरों में खड़ी हो गयीं कुर्सियाँ,
बोलियाँ जब दलालों ने लगवाई तो,
देश से भी बड़ी हो गयीं कुर्सियाँ।
आज हम सबको आवश्यकता है --- अपनी सुप्त मनोवृत्तियों को जाग्रत करने की। आत्मशोधन से ही हम अपनी पाश्विक वृत्तियों का दमन कर निर्माण कार्य के प्रति प्रतिबद्ध हो सकते हैं।
आइए! विजयदशमी के इस पावन पर्व पर हम ये संकल्प लें कि आतंकवाद, भ्रष्टाचार, जातिवाद, सम्प्रदायवाद, राष्ट्रद्रोह और अलगाववाद जैसे षडयंत्रों से दूर रहकर हम एक नवीन भारत की सर्जना करें।
भगवान राम के आचरणों को मन में सृजित कर इस सभी समस्याओं का समाधान करने का भरसक प्रयास करें।
जय श्री राम
लेखिका
डॉ0 प्रवीणा दीक्षित,
हिन्दी शिक्षिका,
के.जी.बी.वी. नगर क्षेत्र,
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