महर्षि बाल्मीकि

सहस्त्रों वर्षों पूर्व महर्षि बाल्मीकि ने जन्म लिया
ईश्वरीय प्रेरणा से सांसारिक मोह का त्याग किया।
इतनी कठिन तपस्या थी की देह में दीमक ने घर बना लिया।
बांबी लगने से ही बाल्मीकि नाम अलंकृत हुआ,
तमसा नदी के तट पर महर्षि ने आश्रम बना लिया।
कई रचनायें करते-करते रामायण ग्रन्थ को रचित किया,
रामायण जैसी कथा किसी कवि ने नहीं लिखा।
सात खंड में विभाजित करके,
संस्कृत साहित्य का नाम ऊँचा किया
सामाजिक स्थिति, शासन व्यवस्था
रहन-सहन को वर्णित किया।
इसीलिए रामायण को त्रेता युग का
इतिहास ग्रन्थ मान लिया,
सीता सुकुमारी ने इनके आश्रम में
लव कुश को जनम दिया।
बाल्मीकि ने लव कुश को
युद्ध कला पारंगत किया
अश्वमेध यज्ञ में लव कुश ने
विजय हासिल किया।
अनमोल कृति रामायण को
पूरे विश्व में विस्तृत किया।
त्रिकाल दर्शी, आदिकवि बाल्मीकि को सबने याद किया।

क्रौंच पछी के रुदन को सुनकर
महर्षि को न सहन हुआ,
दयावान बाल्मीकि के मुख से
कविता का स्रोत फूट पड़ा।

मा निषाद प्रतिष्ठाम् त्वमगमः
शाश्वती:समा:।
यतक्रौंचमिथुनादेकं अवधी:
काममोहितमं।।

रचयिता
अनुरंजना सिंह,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय कोठिलिहाई,
जनपद-चित्रकूट।

Comments

Total Pageviews