एक मुट्ठी मिट्टी अभियान

यह नवोद्भि उन्नत होकर वृक्ष बने छाया फलदार।
जिस पर चहकें असंख्य पक्षी बिना किये कोई चीख पुकार।।

केवल चहकें अपनी-अपनी भाषा में अपने ढंग से।
और अलंकृत करें वृक्ष को अपने पंखों के रंग से।।

इसके लिए चाहिए होगा शाखाएँ हों महा विशाल।
और तना हो सुदृढ़ इतना झेल सके जो हर भूचाल।।

मूल मृदा में धँसा हुआ हो गहराई तक चारों ओर।
जल लेता हो किसी स्रोत से जिसका ना हो कोई छोर।।

पोषक तत्वों का शोषण कर पत्तों तक पहुँचाता हो।
वृक्ष का नस्सा नस्सा पूरा-पूरा पोषण पाता हो।।

कुछ लताओं और वल्लरियों को भी अवलंबन देता हो।
इसके लिए उन बेलों से प्रतिपूर्ति शुल्क ना लेता हो।।

यह विटप बताएँ हमें कि कैसे चलता अच्छा लोकतंत्र।
वह लोकतंत्र जो होता है जनता की सुविधा का सुयंत्र।।

चिड़ियों की तरह मेरे राष्ट्र में रहें सभी जाति-पंथों के लोग।
और राष्ट्रहित में हो पावे सब की शक्ति का सद्-उपयोग।

संसाधनों का शुभ दोहन कर खूब करते हम धन अर्जन।
और करें उसे वितरित ऐसे कोई कहीं ना हो निर्धन।।

सैन्य सुरक्षा खूब प्रबल हो झेल सके जो सभी प्रहार।
निर्बल राष्ट्रों को भी शरण दें बिना लिए कोई प्रत्युपकार।।

मेरे राष्ट्र में यह सब गुण हों जो एक वृक्ष में होते हैं।
इसी सोच के साथ चलो एक नया बीज हम बोते हैं।।

रचयिता
हिमांशु चौहान "ला-पर-वाह!",
उच्च प्राथमिक विद्यालय-पदियानगला,
विकास क्षेत्र-भगतपुर टांडा,
जनपद-मुरादाबाद।

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